दृश्यम्
पाण्डेय सरिता‘रेत पर नदी’ काव्य संग्रह की रचना
घर की खिड़कियों से झाँकती,
रात और रोशनी का संगम!
निर्जीव दीवारों पर नाचती,
सजीव दुनिया की जीती-जागती,
श्वेत-श्यामल परछाइयों का नर्तन!
आकर्षित, विस्मित बाल-सुलभ
जिज्ञासाओं का मुझमें उद्वेलन!
ओह ये कैसा परिवर्तन?
कभी शान्त-स्तब्धता लिए
अनुभवी स्पंदन!
कभी चंचलता बड़ी गतिशील,
आईने सा परावर्तन!
हवाओं के सुर-लय-ताल पर,
प्रकृति का मधुर गुंजित अभिनंदन!
दृष्टि और दृश्य का उन्मीलन!!