महाकुंभ में

01-03-2025

महाकुंभ में

पाण्डेय सरिता (अंक: 272, मार्च प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

कुछ लोग डरे-दुबके देख रहे हैं, 
मोबाइल और दूरदर्शन पर, 
उफनती बड़ी भीड़ आने का समाचार, 
महाकुंभ में। 
 
कुछ लोग घर बैठे पढ़ रहे हैं ख़बरों में
दुर्घटनाएँ-हताशा-निराशाएँ-अत्याचार, 
महाकुंभ में। 
 
कुछ लोग जिज्ञासावश भौचक आँखें गड़ाए, 
प्रश्न चिह्न उठाए, 
देख रहे सनातन संस्कृति का आधार, 
महाकुंभ में। 
 
कुछ लोग आतुर—करने को शिकार, 
राक्षसी-पापात्मा, भक्षक अवतार, 
महाकुंभ में। 
 
कुछ लोग अनियंत्रित भीड़ का हिस्सा, 
आपसी होड़ में प्रतिस्पर्धात्मक ठेल-ठाल 
मचा भगदड़-हाहाकार, 
भेड़चाल में मारने-मरने को तैयार, 
महाकुंभ में। 
 
दाता भी मिलेंगे 
याचक की भी भरमार, महाकुंभ में। 

कुछ लोग तत्पर पुण्यात्मा रक्षक, अनुशासित साधक, 
कुछ लिए उन्मादी-अराजक, बाधक व्यवहार, महाकुंभ में। 

कुछ लोग सहज-सरल, 
मुक्त-संन्यासी उदासीन भी है, 
कुछ लोग पदासीन दिग्भ्रमित पद-प्रतिष्ठा अहंकार, 
महाकुंभ में। 
 
सामाजिक-सांस्कृतिक धर्म एवम कर्म की सौग़ात लिए 
राजनीतिक और आर्थिक व्यापार, 
महाकुंभ में।
  
योग-दर्शन-आध्यात्मिकता समेटे 
योगी-संन्यासियों के साथ जुड़ा गृहस्थ संसार, 
महाकुंभ में। 
 
बारहवें पूर्ण कुंभ पर एक सौ चौवालिस सालों
 में आता एक बार, महाकुंभ में। 
 
करोड़ों जा कर आ भी गए, करोड़ों जाने को हैं तैयार, 
महाकुंभ में। 
 
विविधताएँ बिखेरे व्यापक आकार 
देखना-समझना-जानना है तो, 
वह दिव्य-भव्य साक्षात्कार, महाकुंभ में। 
 
प्रयाग-त्रिवेणी के जलधार में मोक्षदायी-ऊर्जावान संचार, 
महाकुंभ में। 
उपस्थित करोड़ों की भीड़ में एक ही याचना और कामना
मुक्ति की पुकार, महाकुंभ में। 
देव दुर्लभ है जो मानव को मिला अधिकार, महाकुंभ में। 

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