प्रतीक्षा

15-04-2022

प्रतीक्षा

पाण्डेय सरिता (अंक: 203, अप्रैल द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

दूर सड़क पर सरकती चली जाती हैं, 
एक से एक परछाइयाँ! 
उन सबके प्रति ध्यान का एकमात्र उद्देश्य? 
दूर गुज़रते लोगों में, 
मन मेरा तलाशता है तुम्हें! 
 
बड़े ग़ौर से निहारता है तुम्हें! 
यह सोचकर 
“शायद
उनमें से कोई एक, 
उस मोड़ से गुज़र
इस राह पर मुड़ेगा; 
और वह कोई और नहीं
तुम ही रहोगे।” 
यह मेरा भ्रामक मोह भी हो सकता है। 
इस राह पर आने वाला
सिर्फ़ तुम ही रहो; 
इसमें संदेह है। 
बावजूद इसके कल्पना करता है। 
दूर-दूर तक बिछी मख़मली हरियाली! 
के बीच से निकल कर
दिखेगा तुम्हारा मुखड़ा! 
सीधे साधारण से व्यक्तित्व में छिपा
मेरे चाँद का टुकड़ा! 
घड़ी के काँटे बेदर्दी से
गुज़रते, 
टिक-टिक करते। 
निश्चित समय गुज़रा जब से; 
प्रतीक्षारत पति की
शिला पर बैठी रोहिणी सी, 
मैं यहाँ बैठी जाने कब से? 
है जाने कब तक मेरी आशा पूरी होती? 
पल-पल की घड़ियाँ
उत्सुक-आकुल आँखों में पिरोती। 
संभवतः कुछ ही क्षण में
निष्प्राण आँखों की मिल जाए ज्योति! 
तुम्हारा प्यार और इंतज़ार ही
मुझ सीपी की मोती! 

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