हँसते-मुस्कुराते,
प्यार से एक दूसरे को सँभालते,
माता-पिता जहाँ थे,
साथ उनके सबर था।
वहीं घर था।
एक कमरा . . .
अनेक कमरों की सीमा
से बंधन-मुक्त,
संसाधनों के अतिरेक का
किसे फ़िक्र था।
वहीं घर था।
जहाँ शान्ति, सुरक्षा, संरक्षा
नाम की तेल, दीपक में
बाती जलती
उजाला हर प्रहर था।
वहीं घर था।
जहाँ हम निर्भय चहचहाते थे,
स्वतंत्र अस्तित्व की खींच-तान नहीं,
गुँथा सब एक-दूसरे पर निर्भर था।
वहीं घर था।
उम्र के साथ,
समय के रथ पर सवार,
जीवन के हर मोड़ पर
सबका अपनी-अपनी
जगह मान-आदर था।
वहीं हमारा घर था।
जहाँ हम थे आज हमारे बच्चे!
कल से आज तक की
निरन्तर यात्रा में पक्के-कच्चे!
अनुभवों का जो असर था;
और मरणशील मानव
जीवन का राह अमर था।
चले जाना है एक दिन
अनन्त ब्रह्माण्ड के डगर पर
कहते हुए यह पृथ्वी हमारा घर था।
वहीं हमारा घर था।