पुरानी चिट्ठी
पाण्डेय सरिता(मेरे काव्य संकलन ‘रेत की नदी’ से उद्धृत)
बहुत पुरानी किसी डायरी में,
उलटते-पुलटते कुछ हाथ आया!
जिज्ञासा वश खोल कर देखा
तो मैंने पाया!
एक छोटा सा
कागज़ का टुकड़ा!
जो बड़े यत्न से था सँजो रखा।
अपने प्रिय के नाम,
मधुर शब्दों के मोती!
अभिव्यक्तियों में पिरोती!
बहुत फ़िक्र और भावुक,
संवेदनशीलता में सराबोर!
वर्षों पुरानी सुन्दर सी कोई डोर!
आज भी एक-दूजे के प्रति,
नहीं दूजा कोई और!
ओह! कितनी पुरानी?
देखते-देखते दशक
से भी ज़्यादा बीत गया।
हाथों से हमारे बहुत कुछ,
उम्र और अवस्था रूप में
समय रीत गया।
हाँ, ये भी सत्य;
रहा अब ना वो प्रेम नया!
आज भी वो शब्द,
शुभेच्छा के साथ,
प्रेम साधना!
जल्दी लौटने की कामना,
मुश्किल प्रतीक्षा की घड़ियाँ!
काग़ज़ से उतर हृदय में समा गएग।
वो सोई भावनाएँ पुनः जगा गए।