ये हरियाली की तस्वीरें झूठी हैं

15-06-2025

ये हरियाली की तस्वीरें झूठी हैं

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 279, जून द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

पौधे उगते हैं अब केवल स्टेटस की ज़ुबानों में, 
धूप तप रही है सच में, साया है अफ़सानों में। 
 
हरियाली की तस्वीरों पर वाह-वाह तो होती है, 
पर काटे जाते हैं जंगल सत्ता के फ़रमानों में। 
 
धरती माँ का आँचल तो अब रियल में तार-तार है, 
“सेव अर्थ” लिखा मिला बस बच्चों के इम्तहानों में। 
 
गमलों में तुलसी पूजें, पर बंजर छोड़ें खेतों को, 
कैसे भरोसा कर लें हम इन काले इरादों में? 
 
भाषण की धूप बहुत तेज़ है, आँखें अब जलती हैं, 
सच के पौधे मुरझा जाते हैं नक़ली सावानों में। 
 
तस्वीरों में वृक्ष खड़े हैं, असल में बस बिल्डिंग है, 
हर पेड़ गिरा है सत्ता की योजनाओं के नामों में। 
 
पर्यावरण दिवस है आज, मंचों पर है शोर बहुत, 
कल फिर एक पार्क कटेगा नेता के निवासों में। 

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