थोड़ी धूल रहने दो

01-11-2025

थोड़ी धूल रहने दो

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 287, नवम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

ना झाड़ो इतना घर को तुम, कि सब निशान मिटा डालो, 
कुछ धूल जमी रहने दो, यारो, यादों को फिर जगा डालो। 
जो धूल जमी है कोनों में, उसने बीते कल को है सँभाला, 
साफ़ करो जो सब कुछ तुम, खो दोगे अपनी मधुशाला। 
 
किसी शेल्फ़ में, किसी पन्ने में, कोई ख़त मुस्कुराता होगा, 
किसी तस्वीर की धुँधलाहट में कोई चेहरा आता होगा। 
घड़ी की सूइयाँ थम जाएँ, जब कोई याद बने मतवाला, 
मत छेड़ो सब कुछ आज ही, रहने दो थोड़ी मधुशाला। 
 
ना जाने किस बक्से में छिपकर कोई पत्ता पुराना गाए, 
किसी हवा के झोंके में, बचपन की ख़ुशबू लहराए। 
वो जो पल थे—चल दिए बहुत दूर, पर मन वही निराला, 
उनको रहने दो थोड़ी देर, मन पर रहने दो मधुशाला। 
 
साफ़-सुथरा घर अच्छा है, पर ख़ाली-ख़ाली लगता है, 
थोड़ी धूल बहुत प्यारी है, जब स्मृतियों से जगता है। 
ना झाड़ो इतना मन को भी, कि मिट जाए उसका हवाला, 
थोड़ी धूल जहाँ रहती है—वहीं बसती है मधुशाला॥

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