सोशल मीडिया पर स्क्रॉल होती ज़िन्दगी
डॉ. सत्यवान सौरभ(हम में से ज़्यादातर लोग आज सोशल मीडिया के आदी हैं। चाहे आप इसका इस्तेमाल दोस्तों और रिश्तेदारों से जुड़ने के लिए करें या वीडियो देखने के लिए, सोशल मीडिया हम में से हर एक के लिए जाना-पहचाना तरीक़ा है। प्रौद्योगिकी और स्मार्ट उपकरणों के प्रभुत्व वाली दुनिया में नेटफ़्लिक्स को बिंग करना या फ़ेसबुक पर स्क्रॉल करना, इन दिनों मिनटों और घंटों को खोना बहुत आम है। ये वेबसाइट और ऐप हमारा ज़्यादातर समय खा रहे हैं, इतना कि यह अब एक लत में बदल गया है। सोशल मीडिया की लत जल्दी से उस क़ीमती समय को खा सकती है जो कौशल विकसित करने, प्रियजनों के साथ समय का आनंद लेने या बाहरी दुनिया की खोज में ख़र्च किया जा सकता है)
—डॉ सत्यवान सौरभ
अगर आप समाज से अलग-थलग महसूस करते हैं, और सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म जैसे फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे ऐप्स पर ज़्यादा समय बिताते हैं तो एक नए शोध के अनुसार, इससे स्थिति और बिगड़ सकती है। सोशल मीडिया से युवाओं में अवसाद बढ़ रहा है। फ़ेसबुक से डिप्रेशन का ख़तरा 7% बढ़ा है, फ़ेसबुक से चिड़चिड़ापन का ख़तरा 20% बढ़ा है। सोशल मीडिया ने मोटापा, अनिद्रा और आलस्य की समस्या बढ़ा दी है, “फियर ऑफ़ मिसिंग आउट’ को लेकर भी चिंताएँ बढ़ गई हैं। स्टडी के मुताबिक़ सोशल मीडिया से सुसाइड रेट बढ़े है। इंस्टाग्राम से लड़कियों में हीन भावना आ रही है।
सोशल मीडिया के माध्यम से जाँच करना और स्क्रॉल करना पिछले एक दशक में तेज़ी से लोकप्रिय गतिविधि बन गया है। अधिकांश लोगों द्वारा सोशल मीडिया का उपयोग सोशल नेटवर्किंग साइटों के आदी हो जाने से हो रहा हैं। वास्तव में, सोशल मीडिया की लत एक व्यवहारिक लत है जिस में सोशल मीडिया के बारे में अत्यधिक चिंतित होने की विशेषता है, जो सोशल मीडिया पर लॉग ऑन करने या उपयोग करने के लिए एक अनियंत्रित आग्रह से प्रेरित है, और सोशल मीडिया के लिए इतना समय और प्रयास करते है जो अन्य महत्त्वपूर्ण जीवन क्षेत्रों को प्रभावित करता है।
वर्तमान समय में फोन बड़े से लेकर बच्चों तक के लए ज़रूरी हो गया है। बच्चों के स्कूल की पढ़ाई भी ऑनलाइन हुई है। ऐसे में बच्चे फोन पर ज़्यादा समय बताते है। फोन के ज़्यादा इस्तेमाल की वजह से बच्चों को सोशल मीडिया की लत भी लग रही है। सोशल मीडिया पर लत की वजह से बच्चों की नींद पर असर पड़ रहा है। नज़र भी कमज़ोर हो जाती है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ की रिपोर्ट में ये साफ़ हुआ है कि अगर कोई बच्चा एक हफ़्ते तक लगातार सोशल मीडिया का प्रयोग करते है, तो वह एक रात तक की नींद भी खो सकते है। अक़्सर बच्चों के साथ ये होता है कि जब वो सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके सोते है, तो आँखें बंद करने के बाद भी उनके दिमाग़ में वह चीज़ें चलती रहती है, जो वो देखकर सोए है।
सोशल मीडिया की लत एक व्यवहार सम्बन्धी विकार है जिसमें किशोर या युवा वयस्क सोशल मीडिया से मोहित हो जाते हैं और स्पष्ट नकारात्मक परिणामों और गंभीर कमियों के बावजूद ऑनलाइन मीडिया को कम करने या बंद करने में असमर्थ होते हैं। जबकि कई किशोर दैनिक आधार पर (फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, यूट्यूब, वाइन, स्नैपचैट और वीडियो गेम सहित) ऑनलाइन मीडिया के किसी न किसी रूप में संलग्न होते हैं, किशोर सोशल मीडिया की लत अत्यधिक ख़तरनाक है, एक बढ़ती हुई अच्छा महसूस करने के तरीक़े के रूप में सोशल मीडिया पर निर्भरता, और दोस्ती में नुक़्सान, शारीरिक सामाजिक जुड़ाव में कमी और स्कूल में नकारात्मक प्रभाव के बावजूद इस व्यवहार को रोकने में असमर्थता चिंता का विषय बन गई है।
दुनिया में हर पाँचवाँ युवा यानी लगभग 19% युवाओं ने साल भर के भीतर किसी न किसी तरह के खेल में पैसा लगाया है। इसमें वे ज़्यादातर बार ऑनलाइन सट्टेबाज़ी का शिकार हुए है। आज के समय में सोशल मीडिया का बहुत ज़्यादा उपयोग से युवा वर्ग में न सिर्फ़ आत्मविश्वास कम हो रहा है बल्कि अकेलेपन का भी आभास बढ़ रहा है। यही कारण है कि हताशा और चिंता भी बढ़ती है। पिछले काफ़ी समय से सोशल मीडिया पर वैसे तो सभी वर्गों की सक्रियता बढ़ी है, लेकिन सबसे ज़्यादा प्रभावित युवा वर्ग हो रहा है। यहाँ तक की आत्महत्या का ख़्याल भी युवाओं में बढ़ रही है। लंबे समय तक सोशल मीडिया पर बने रहने के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर हो रहा है। ऐसे मामलों में 15 से 45 वर्ष आयु के केस अधिक सामने आ रहे हैं। जिसके कारण नींद की कमी के साथ-साथ कार्य की क्षमता भी प्रभावित होती है। आज का दौर मोबाइल, लैपटॉप जैसे गैजेट्स के बग़ैर अधूरा है। ऐसे में आप अपनी मानसिक सेहत का ध्यान रखकर और कुछ उपायों को अपनाकर सोशल मीडिया के एडिक्शन से बच सकते है।
हम में से ज़्यादातर लोग आज सोशल मीडिया के आदी हैं। चाहे आप इसका इस्तेमाल दोस्तों और रिश्तेदारों से जुड़ने के लिए करें या वीडियो देखने के लिए, सोशल मीडिया हम में से हर एक के लिए जाना-पहचाना तरीक़ा है। प्रौद्योगिकी और स्मार्ट उपकरणों के प्रभुत्व वाली दुनिया में नेटफ़्लिक्स को बिंग करना या फ़ेसबुक पर स्क्रॉल करना, इन दिनों मिनटों और घंटों को खोना बहुत आम है। ये वेबसाइट और ऐप हमारा ज़्यादातर समय खा रहे हैं, इतना कि यह अब एक लत में बदल गया है। सोशल मीडिया की लत जल्दी से उस क़ीमती समय को खा सकती है जो कौशल विकसित करने, प्रियजनों के साथ समय का आनंद लेने या बाहरी दुनिया की खोज में ख़र्च किया जा सकता है। अध्ययनों से पता चला है कि यह मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों जैसे कम आत्मसम्मान, अकेलेपन की भावना, अवसाद और चिंता का कारण बन सकता है।
सप्ताह में कम से कम एक या दो बार, “सोशल मीडिया फ़्री” दिवस मनाएँ। यह शनिवार/रविवार को हो सकता है या जो भी दिन आपको लगता है कि आपके लिए उपयुक्त है। समय के साथ, हमें अपनी स्क्रीन पर दिखने वाले छोटे-छोटे इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप या फ़ेसबुक आइकन की आदत हो जाती है। नया क्या है यह देखने के लिए नियमित रूप से अपने फोन की जाँच करना हमारी आदत बन गई है। आप अपने सोशल मीडिया के उपयोग को कम करने के लिए दिन में एक बार अपने नोटिफिकेशन देख सकते हैं। सोशल मीडिया के लिए अपनी आवश्यकता पर विचार करें क्योंकि कभी-कभी सोशल मीडिया की लत हमारे ध्यान या दूसरों के साथ सम्बन्ध की आवश्यकता के कारण हो सकती है। इस पर अपने विचार लिखने के लिए कुछ समय व्यतीत करें और इस पर काम करने का प्रयास करें कि आप अपने उपयोग को कैसे कम कर सकते हैं।
किशोर सोशल मीडिया व्यसन उपचार का पहला और सबसे प्राथमिक कार्य किशोरों द्वारा सोशल मीडिया पर बिताए जाने वाले समय को कम करना है। किशोरों द्वारा ऑनलाइन बातचीत करने में लगने वाले समय को सीमित करके, हम उन्हें अपने साथियों के साथ वास्तविक सामाजिक संपर्क को प्राथमिकता देने में मदद करते हैं। यह न केवल स्वस्थ है, बल्कि इस तरह, वे स्वयं की बेहतर समझ विकसित करने की अधिक सम्भावना रखते हैं। हम जानते हैं कि सोशल मीडिया की लत से जूझ रहे किशोरों के लिए ताज़ी हवा में अधिक समय बिताना महत्त्वपूर्ण है। सोचिये, हमारे आस-पास समुद्र तटों से लेकर पार्कों और लंबी पैदल यात्रा मार्गों तक, सुंदर प्राकृतिक स्थल क्यों बनाए गए हैं।
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