अब के सावन में

15-07-2025

अब के सावन में

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 281, जुलाई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

अब के सावन में
बूँदें सिर्फ़ पानी नहीं रहीं, 
वो सवाल बनकर गिरती हैं
छतों, छायाओं और चेतना पर। 
 
अब के सावन में
न कोई प्रेम पत्र भीगा, 
न कोई हथेली मेहँदी से लिपटी, 
बस मोबाइल स्क्रीन पर टपकी बारिश की रील। 
 
अब के सावन में
कविताएँ भीगने से डरती हैं, 
काग़ज़ गल जाए तो? 
या भाव उड़ जाए तो? 
 
पर फिर भी, 
जब एक बूँद चुपचाप
मेरी खिड़की पर टिकती है, 
मैं जानती हूँ—
भीतर का सावन अब भी जीवित है। 
 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ललित निबन्ध
कविता
साहित्यिक आलेख
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य कविता
दोहे
सामाजिक आलेख
ऐतिहासिक
सांस्कृतिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
काम की बात
पर्यटन
चिन्तन
स्वास्थ्य
सिनेमा चर्चा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें