भीतर का दीया

01-11-2025

भीतर का दीया

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 287, नवम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

इस दिवाली माटी का ही नहीं, 
भीतर का भी दीया जलाएँ। 
 
घर की सफ़ाई तो हर साल होती है, 
पर इस बार मैंने मन की भी सफ़ाई की है। 
 
अब मन चमक गया है—
ना किसी से बैर, ना किसी से विरोध। 
ना किसी से अधिक लगाव, 
ना किसी से अपेक्षा। 
 
ना ज़रूरत से ज़्यादा बातचीत, 
ना मेल-जोल का दिखावा। 
ना किसी की बुराई, 
ना किसी की तारीफ़ का मोह। 
 
बस मन में शान्ति है—
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर। 
 
इस दीपावली सबके जीवन में सुख उतरे, 
तन में उजाला रहे, 
और मन में भी सदा दीप जले।

-डॉ। सत्यवान सौरभ

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