ख़त्म हुई अठखेलियाँ

15-12-2024

ख़त्म हुई अठखेलियाँ

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 267, दिसंबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)


तितली है ख़ामोश (दोहा संग्रह) 
 
दुनिया मतलब की हुई, रहा नहीं संकोच। 
हो कैसे बस फ़ायदा, यही लगी है सोच॥
 
औरों की जब बात हो, करते लाख बवाल। 
बीती अपने आप पर, भूले सभी सवाल॥
 
मतलब हो तो प्यार से, पूछ रहे वह हाल। 
लेकिन बातें काम की, झट से जाते टाल॥
 
लगी धर्म के नाम पर, बेमतलब की आग। 
इक दूजे को डस रहे, अब ज़हरीले नाग॥
 
नंगों से नंगा रखे, बे-मतलब व्यवहार। 
बजा-बजाकर डुगडुगी, करते नाच हज़ार॥
 
हर घर में कैसी लगी, ये मतलब की आग। 
अपनों को ही डस रहे, बने विभीषण नाग॥
 
बचे कहाँ अब शेष हैं, रिश्ते थे जो ख़ास। 
बस मतलब के वास्ते, डाल रहे सब घास॥
 
‘सौरभ’ डी.सी. रेट से, रिश्तों के अनुबंध। 
मतलब पूरा जो हुआ, टूट गए सम्बन्ध॥
 
तेरी ख़ातिर हों बुरे, नहीं बचे वे लोग। 
समझ अरे तू बावरे, मतलब का संयोग॥
 
रिश्तों में है बेड़ियाँ, मतलब भरे लगाव। 
ख़त्म हुई अठखेलियाँ, ग़ायब मन से चाव॥
 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ऐतिहासिक
दोहे
सांस्कृतिक आलेख
ललित निबन्ध
सामाजिक आलेख
लघुकथा
किशोर साहित्य कविता
काम की बात
साहित्यिक आलेख
पर्यटन
चिन्तन
स्वास्थ्य
सिनेमा चर्चा
कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें