फ़ैसला

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 266, दिसंबर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

“बेटा तुम्हारा परिणाम क्या रहा? मैंने सुना है कि आज के अख़बार में एचसीएस का परिणाम आया है,” महेन्द्र के पिताजी ने उससे उत्सुकता पूर्वक पूछा। 

“हाँ, पिताजी आज परिणाम आ गया लेकिन मेरा चयन नहीं हुआ। शायद मेरी क़िस्मत ही ख़राब है तभी तो हर साल साक्षात्कार में असफल हो जाता हूँ,” महेन्द्र ने मायूस होते हुए जवाब दिया। 

“बेटे, हर इन्सान को अपने कर्मों का फल अवश्य मिलता है, इसमें मायूस होने की ज़रूरत नहीं है। अगले साल तुहारा चयन ज़रूर हो जायेगा, तुम इस बार ज़्यादा परिश्रम करो,” महेन्द्र के पिता ने उसका ढाढ़स बँधाते हुए कहा। 

“परिश्रम! नहीं पिताजी, अब मेरा इन बातों से विश्वास उठ गया है। पड़ोस के गाँव के रोशनलाल को देखो। उसका तो पहली बार में ही चयन हो गया जबकि उसके अंक भी मेरे से कम थे। आस-पास के लोगों से सुना तो पता चला कि उसके पिता की बड़े-बड़े राजनेताओं से जान-पहचान है। इसी का फ़ायदा उठाते हुए उन्होंने पचास लाख रुपये देकर रोशन का चयन पहले से ही पक्का करवा लिया। बताइए, क्या फ़ायदा है रात-रात भर जागकर पढ़ाई करने का?” 

महेंद्र के पिताजी उसे समझाने के लिए कुछ कहना चाहते थे लेकिन महेंद्र ने अपना हाथ उठाकर उन्हें कुछ भी बोलने से रोकते हुए फिर से कहा, “मैंने तो अब फ़ैसला कर लिया है कि किसी राजनैतिक पार्टी में शामिल हो जाना ज़्यादा सही है,” यह कहते हुए महेन्द्र ने अपनी किताबें एक ओर फेंक दी। 

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