बेचारा पौधा

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 279, जून द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

बेचारा . . . 
पौधा एक, 
फोटो में पच्चीस लोग। 
 
किसी ने पकड़ा गमला, 
तो किसी ने थामी टहनी, 
किसी ने मुस्कान ओढ़ी, 
तो किसी ने झलकाई सहृदयता बहु-अभिनयी। 
 
कंधे से कंधा भिड़ाकर खड़े, 
कपड़ों पर प्रेस, चेहरे पर शान, 
फोटो खिंच गई—
पर पौधे की प्यास रह गई अनजान। 
 
मुख्यमंत्री जी बोले–“हरियाली अभियान!”, 
नेता जी बोले–“धरती माँ को प्रणाम!” 
और वहीं कोने में, 
सूरज की धूप में तिलमिलाता, 
सूखता गया वो मासूम हरियाण। 
 
अगले दिन अख़बार में
बड़ी सी तस्वीर छपी–
“हमने एक पौधा लगाया!”
मगर सच यह था कि
पौधा ही फोटो में कहीं खो गया। 
 
सच पूछो तो–
पौधे की ज़रूरत मिट्टी, पानी और साया थी, 
ना कि शाब्दिक घोषणाओं की छाया थी। 
 
हर पौधा पोस्टर नहीं होता। 
उसे दिखावे नहीं, देखभाल चाहिए।

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