मख़मल की झुर्रियाँ

01-06-2025

मख़मल की झुर्रियाँ

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मख़मल की झुर्रियाँ, 
वक़्त की स्याही से लिखी, 
हर सिलवट में बसती हैं, 
अनकही दास्तानों की छवि। 
 
ये उम्र की नहीं, 
सिर्फ़ बीते लम्हों की गवाही हैं, 
जहाँ हर सिलवट के पीछे, 
हज़ार एहसासों की परछाईंं हैं। 
 
सफ़ेद बालों की तरह, 
ये भी एक मुकम्मल कहानी हैं, 
जिसमें हर ख़ामोशी, 
एक नयी ग़ज़ल सुनाती है। 
 
बेबसी नहीं, ये तो
उस मख़मली अहसास का रेशम है, 
जो समय की सलाइयों से बुना गया, 
और ख़ुद से प्यार की नर्माई से सना गया। 

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