समझदार हो तुम

01-11-2025

समझदार हो तुम

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 287, नवम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

फिर मेरे हिस्से में आया, 
कोई समझौता नया। 
किसी ने कहा—
“तुम तो बहुत समझदार हो . . .” 
 
मैं मुस्कुरा दिया, 
जैसे यह तारीफ़ नहीं, 
एक निर्णय हो—
कि अब मुझे महसूस नहीं करना चाहिए। 
 
समझदार लोग
रोते नहीं, 
सिर्फ़ मुस्कुराते हैं
और भीतर धीरे-धीरे
मरते रहते हैं। 
 
वे तर्कों में ढूँढ़ते हैं सुकून, 
जवाबों में छिपाते हैं आँसू, 
और चुप रहना
उनकी आदत बन जाती है। 
 
हर बार जब कोई कहता है—
“तुम समझदार हो, ” 
मुझे लगता है—
मैं थोड़ा और दूर हो गया हूँ
अपने ही दिल से। 

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