सहमा-सहमा आज
डॉ. सत्यवान सौरभकौन पूछता योग्यता, तिकड़म है आधार।
कौवे मोती चुन रहे, हँस हुए बेकार॥
परिवर्तन के दौर की, ये कैसी रफ़्तार।
ग़ैरों को सिर पर रखें, अपने लगते भार॥
अंधे साक्षी हैं बनें, गूंगे करें बयान।
बहरे थामे न्याय की, ‘सौरभ’ आज कमान॥
कौवे में पूर्वज दिखे, पत्थर में भगवान।
इंसानों में क्यों यहाँ, दिखे नहीं इंसान॥
जब से पैसा हो गया, संबंधों की माप।
मन दर्जी करने लगा, बस ख़ाली आलाप॥
दहेज़ आहुति हो गया, रस्में सब व्यापार।
धू-धू कर अब जल रहे, शादी के संस्कार॥
हारे इज़्ज़त आबरू, भीरु बुज़दिल लोग।
खोकर अपनी सभ्यता, प्रश्नचिन्ह पे लोग॥
अच्छे दिन आये नहीं, सहमा-सहमा आज।
‘सौरभ’ हुए पेट्रोल से, महँगे आलू-प्याज॥
गली-गली में मौत है, सड़क-सड़क बेहाल।
डर-डर के हम जी रहे, देख देश का हाल॥
लूट-खून दंगे कहीं, चोरी भ्रष्टाचार।
ख़बरें ऐसी ला रहा, रोज़ सुबह अख़बार॥
सास ससुर सेवा करे, बहुएँ करती राज।
बेटी संग दामाद के, बसी मायके आज॥
(सत्यवान सौरभ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है ख़ामोश’ से)
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