खिल गया दिग दिगंत

15-02-2025

खिल गया दिग दिगंत

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 271, फरवरी द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

आ गया ऋतुराज बसंत। 
प्रकृति ने ली अंगड़ाई, 
खिल गया दिग दिगंत॥
 
भाव नए जन्मे मन में, 
उल्लास भरा जीवन में। 
प्रकृति में नव सृजन का, 
दौर चला है तुरंत। 
खिल गया दिग दिगंत॥
 
कूकू करती काली कोयल, 
नव तरुपल्लव नए फल। 
हरियाली दिखती चहुँओर, 
पतझड़ का हो गया अंत। 
खिल गया दिग दिगंत॥
 
बहकी हवाएँ छाईं, 
मस्ती की बहार आई। 
झूम रही कली-कली
ख़ुश्बू हुई अनंत। 
खिल गया दिग दिगंत॥
 
सोए सपने सजाने, 
कामनाओं को जगाने। 
आज कोंपलें कर रही, 
पतझड़ से भिड़ंत। 
खिल गया दिग दिगंत॥

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