दर्द से लड़ते चलो

15-06-2025

दर्द से लड़ते चलो

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 279, जून द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

(आत्महत्या जैसे विचारों से जूझते मन के लिए) 
 
ज़िंदगी जब करे सवाल, 
और उत्तर न मिले हर हाल, 
तब भी तुम थक कर बैठो नहीं, 
आँखों में आँसू हो, पर बहो नहीं। 
 
देखा है मैंने अस्पतालों में, 
साँसों को बचाने की जंग में, 
कोई ज़मीन बेचता है, 
कोई गहने गिरवी रखता है। 
जीवन को जीने की क़ीमत, 
हर दिन वहाँ कोई चुकाता है। 
 
तो क्यों तुम जीवन से भागो? 
क्यों यूँ ही टूट कर बिखर जाओ? 
मरना नहीं चाहता मन, 
वो बस दर्द से छुटकारा चाहता है। 
थोड़ा रुको, थोड़ा सहो, 
समय की नदी को बहने दो। 
 
एक दिन सूरज फिर उगेगा, 
अँधेरे का तम भी सिमटेगा। 
वो दर्द जो असह्य लगता है आज, 
कल बन जाएगा बीते कल का राज। 
 
जो जीते हैं, वही लड़ते हैं, 
जो लड़ते हैं, वही जीतते हैं। 
तुम्हारा होना ही एक जीत है, 
हर साँस तुम्हारी उम्मीद की रीत है। 
 
मत करो उस अंतिम सन्नाटे की पुकार, 
तुम ज़रूरी हो इस संसार। 
उठो, जियो, फिर से मुस्कुराओ, 
दर्द से लड़ो— ख़ुद को गले लगाओ। 

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