ज़रूरत का रिश्ता

15-06-2025

ज़रूरत का रिश्ता

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 279, जून द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

रामेश्वरी देवी को मोबाइल चलाना नहीं आता था, पर बेटे की तस्वीर स्क्रीन पर देखना उन्हें अच्छा लगता था। सुबह-सुबह मोबाइल पर घंटी बजी। कोई कॉल नहीं था, एक नोटिफ़िकेशन था—“Order Delivered।” 

उनके बेटे रोहित ने दूध, दवाई और फल का ऑनलाइन ऑर्डर दिया था . . . अपने घर से, जो कि दिल्ली में था। माँ हरियाणा के छोटे से क़स्बे में अकेली रहती थीं। 

“बेटा बहुत ध्यान रखता है मेरा,” रामेश्वरी देवी हर किसी से गर्व से कहतीं। 

पर सच यह था कि बेटा फोन नहीं करता था, बस महीने में एक बार सामान भिजवा देता था। 

एक दिन महल्ले की बिटिया आरती आई, बोली, “अम्मा जी, आपके बेटे का बर्थडे है आज, आपने विश किया?” 

रामेश्वरी देवी मुस्कुरा दीं, “हमारा रिश्ता अब सिर्फ़ OTP तक सीमित रह गया है बेटा, बर्थडे विश करने के लिए ‘प्यार’ चाहिए होता है, ज़रूरत नहीं।” 

आरती चुप हो गई। 

अम्मा की आँखें भी। 

कभी बेटे की फोटो को छूतीं, कभी छत पर उड़ते पंछियों को देखतीं। 

रिश्ते जब एहसास से ज़्यादा सुविधा बन जाएँ, तो प्यार की ज़मीन दरकने लगती है। 

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