दो-दो हिन्दुस्तान

01-02-2022

दो-दो हिन्दुस्तान

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 198, फरवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

 लाज तिरंगें की रहे, बस इतना अरमान। 
 मरते दम तक मैं रखूँ, दिल में हिन्दुस्तान॥
 
 बच पाए कैसे भला, अपना हिन्दुस्तान। 
 बेच रहे हैं खेत को, आये रोज़ किसान॥
 
 आधा भूखा है मरे, आधा ले पकवान। 
 एक देश में देखिये, दो-दो हिन्दुस्तान॥
 
 सरहद पर जांबाज़ जब, जागे सारी रात। 
 सो पाते हम चैन से, रह अपनों के साथ॥
 
 हम भारत के वीर हैं, एक हमारा राग। 
 नफ़रत ग़ैरत से हमें, जायज़ से अनुराग॥
 
 खा इसका, गाये उसे, ये कैसे इंसान। 
 रहते भारत में मगर, अंदर पाकिस्तान॥
 
 भारत माता रो रही, लिए हृदय में पीर। 
 पैदा क्यों होते नहीं, भगत सिंह से वीर॥
 
 भारत माता के रहा, मन में यही मलाल। 
 लाल बहादुर-सा नहीं, जनमा फिर से लाल॥
 
 मैंने उनको भेंट की, दिवाली और ईद। 
 जान देश के नाम जो, करके हुए शहीद॥
 
 घोटालों के घाट पर, नेता करे किलोल। 
 लिए तिरंगा हाथ में, कुर्सी की जय बोल॥
 
 आओ मेरे साथियों, कर लें उनका ध्यान। 
 शान देश की जो बनें, देकर अपनी जान॥

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