हर चीज़ बिकाऊ है यहाँ

01-11-2025

हर चीज़ बिकाऊ है यहाँ

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 287, नवम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

हर चीज़ बिकाऊ है यहाँ, 
इंसाफ़ से लेकर इंसान तक। 
सपनों की भी क़ीमत लगी, 
अरमान से लेकर जान तक। 
 
सच्चाई अब नीलाम हुई, 
झूठ चढ़ा है सम्मान तक। 
ईमान गिरवी रख आए हम, 
दौलत के उस दरबान तक। 
 
क़लम बिकी तो ख़बर बिकी, 
अब बिकते हैं ऐलान तक। 
न्याय की आँखों पर पट्टी नहीं, 
अब नोटों का है सामान तक। 
 
धर्म बिका, विचार बिका, 
बिकने लगा ईमान तक। 
रिश्तों में भी सौदा होने लगा, 
माँ से लेकर मेहमान तक। 
 
भीड़ तो है मगर इंसान कहाँ, 
खो गए सब पहचान तक। 
हर चेहरा नक़ली, हर बात झूठी, 
बिक चुका यहाँ सम्मान तक। 
 
अब तो ख़ुदा भी बेचने लगे, 
मंदिर से लेकर मसान तक। 
हर चीज़ बिकाऊ है यहाँ, 
इंसाफ़ से लेकर इंसान तक। 

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