ठंड हुई पुरज़ोर

15-11-2024

ठंड हुई पुरज़ोर

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 265, नवम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

(बाल दिवस विशेष)

 

लगे ठिठुरने गात सब, 
निकले कम्बल शाल। 
सिकुड़ रहे हैं ठंड से, 
हाल हुआ बेहाल॥
 
बाहर मत निकलो कहे, 
बहुत ठंड है आज। 
कान पकते सुनते हुए, 
दादी की आवाज़॥
 
जाड़ा आकर यूँ खड़ा, 
ठोके सौरभ ताल। 
आग पकड़ने से डरे, 
गीले पड़े पुआल॥
 
सौरभ सर्दी में हुआ, 
जैसे बर्फ़ जमाव। 
गली मुहल्ले तापते, 
बैठे लोग अलाव॥
 
धूप लगे जब गुनगुनी, 
मिले तनिक आराम। 
सर्दी में करते नहीं, 
हाथ पैर भी काम॥
 
निकलो घर से तुम यदि, 
रखना बच्चों का ध्यान। 
सुबह साँझ घर पर रहो, 
ढककर रखना कान॥
 
लापरवाही मत करो, 
ठंड हुई पुरज़ोर। 
ओढ़ रजाई लेट लो, 
उठिए जब हो भोर॥

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

दोहे
लघुकथा
किशोर साहित्य कविता
सामाजिक आलेख
काम की बात
साहित्यिक आलेख
सांस्कृतिक आलेख
ललित निबन्ध
पर्यटन
चिन्तन
स्वास्थ्य
सिनेमा चर्चा
ऐतिहासिक
कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें