फिर वही बच्चा बन जाएँ

15-11-2025

फिर वही बच्चा बन जाएँ

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 288, नवम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)


(बाल-दिवस विशेष)

 

कभी गुल्लक में खनकते थे सपने, 
अब स्क्रीन पर फिसलती हैं उँगलियाँ। 
कभी मिट्टी में खिलती थी ख़ुशबू, 
अब ए.आर. में दिखती हैं तितलियाँ। 
 
पाठशाला की घंटी अब
ऑनलाइन नोटिफ़िकेशन सी बजती है, 
शरारतें ‘इमोजी’ में सिमटती हैं, 
हँसी अब ‘रील’ में सजती है। 
 
चॉक-डस्ट उड़ती थी, जब मास्टर जी पढ़ाते थे, 
अब टैबलेट चमकता है, जब बच्चे सिर झुकाते हैं। 
खेल के मैदान में जोश की आवाज़ गूँजती थी, 
अब “गेम-ज़ोन” में साइलेंट जीत मिल जाती है। 
 
पर फिर भी—
हर मासूम आँख में वही जिज्ञासा है, 
हर धड़कन में वही भविष्य की भाषा है। 
बस ज़माना बदल गया है थोड़ा, 
पर ‘बालपन’ आज भी सबसे प्यारा रिश्ता है। 
 
चलो, आज बाल दिवस पर
एक पल को फिर वही बच्चा बन जाएँ, 
मिट्टी में उँगली घुमाएँ, 
और दिल से खिलखिला जाएँ। 

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