महकें हर नवभोर पर, सुंदर-सुरभित फूल

01-01-2025

महकें हर नवभोर पर, सुंदर-सुरभित फूल

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 268, जनवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

बने विजेता वह सदा, ऐसा मुझे यक़ीन। 
आँखों में आकाश हो, पाँवों तले ज़मीन॥
 
तू भी पायेगा कभी, फूलों की सौग़ात। 
धुन अपनी मत छोड़ना, सुधरेंगे हालात॥
 
बीते कल को भूलकर, चुग डालें सब शूल। 
महकें हर नवभोर पर, सुंदर-सुरभित फूल॥
 
तूफ़ानों से मत डरो, कर लो पैनी धार। 
नाविक बैठे घाट पर, कब उतरें हैं पार॥
 
छाले पाँवों में पड़े, मान न लेना हार। 
काँटों में ही है छुपा, फूलों का उपहार॥
 
भँवर सभी जो भूलकर, ले ताक़त पहचान। 
पार करे मझदार वो, सपनों का जलयान॥
 
तरकश में हो हौसला, कोशिश के हो तीर। 
साथ जुड़ी उम्मीद हो, दे पर्वत को चीर॥
 
नए दौर में हम करें, फिर से नया प्रयास। 
शब्द क़लम से जो लिखें, बन जाये इतिहास॥
 
आसमान को चीरकर, भरते वही उड़ान। 
जवां हौसलों में सदा, होती जिनके जान॥
 
उठो चलो, आगे बढ़ो, भूलो दुःख की बात। 
आशाओं के रंग से, भर लो फिर ज़ज़्बात॥
 
छोड़े राह पहाड़ भी, नदियाँ मोड़ें धार। 
छू लेती आकाश को, मन से उठी हुँकार॥

हँसकर सहते जो सदा, हर मौसम की मार। 
उड़े वही आकाश में, अपने पंख पसार॥
 
हँसकर साथी गाइये, जीवन का ये गीत। 
दुःख सरगम-सा जब लगे, मानो अपनी जीत॥
 
सुख-दुःख जीवन की रही, बहुत पुरानी रीत। 
जी लें, जी भर ज़िन्दगी, हार मिले या जीत॥
 
ख़ुद से ही कोई यहाँ, बनता नहीं कबीर। 
सहनी पड़ती हैं उसे, जाने कितनी पीर॥

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