क़ुदरत का संदेश

15-09-2025

क़ुदरत का संदेश

डॉ. सत्यवान सौरभ (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

क़ुदरत का रूठना भी ज़रूरी था, 
इंसान का घमंड टूटना भी ज़रूरी था। 
हर कोई ख़ुद को ख़ुदा समझ बैठा, 
उस वहम का छूटना भी ज़रूरी था। 
 
पेड़ कटे, नदियाँ रोईं, पर्वत भी काँपे, 
धरती माँ की कराहें कौन था आँके। 
लोभ में अंधा हुआ इंसान इतना, 
उसको आईना दिखाना भी ज़रूरी था। 
 
आँधियाँ, तूफ़ान, बारिश का प्रहार, 
दे गए चेतावनी—बचो, सँभलो बार-बार। 
जीवन का असली सच बताना भी ज़रूरी था, 
नश्वरता का एहसास कराना भी ज़रूरी था। 
 
क़ुदरत ने सिखाया—मत बनो अभिमानी, 
बूँद-सी है तेरी ज़िंदगी की कहानी। 
विनम्र रहो, और धरती को बचाओ, 
प्रकृति का ज्ञान जगाना भी ज़रूरी था। 

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