पर स्वयं ही समझ न पाया

15-09-2024

पर स्वयं ही समझ न पाया

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

गहरी कही थी बात, 
पर स्वयं ही समझ न पाया। 
 
बहरा बन कर जीना होगा, 
आँखों के रहित दिखना होगा, 
वाणी को मूक रहना होगा, 
नदी में तृण सा बहना होगा, 
ऊँचों को सदा सही कहना होगा। 
शब्दों का टोटा पड़ा फिर से, 
अपनों की ग़लती से उलझ न पाया। 
 
सब रंग मिटा देंगे अपनेपन के, 
ग़रीबी में आते बस सपने धन के, 
कहीं चैन नहीं छाने कोने मन के, 
सब रंग हुए बेरंग अपने तन के, 
टूट गए बिखर गए सपने जन के। 
साधारण कठिन हुआ बहुत, 
किये कितने प्रयास सुलझ न पाया। 
 
गहरी कही थी बात, 
पर स्वयं ही समझ न पाया। 

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