इधर गाँव जा रहा है

15-09-2024

इधर गाँव जा रहा है

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

इधर गाँव जा रहा है, 
शहर मुस्कुरा रहा है। 
 
कोई रोटी को तरसा, 
कोई देश खा रहा है। 
 
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा है, 
काँटों में फूल मुस्कुरा रहा है। 
 
उसे गहरी चोट लगी है, 
हँसी लबों पर ला रहा है। 
 
उसने कहा ग़रीब कहाँ तू, 
दो वक़्त की रोटी पा रहा है। 

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