एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
बीस सालों की डुबकी 

भुलक्कड़पन की इतनी आदत है 
जाने क्या क्या बिसर जाता है 
सोच सोच कर मन उलझता है 
दिल कहता है वक़्त की कश्ती से 
छलाँग लगाकर, एक बार देख आऊँ 
डुबकी लगाकर बीस साल पहले वाले 
बहाव से जा मिलूँ 
शायद! मैं भूल आई हूँ 
कोई बंद लिफ़ाफा 
भावनाओं में डूबे लफ़्ज़ 
तरसते हों मेरे नयनों के लिये 
शायद, फोन का रिसीवर 
ठीक तरह से न रख आई हूँ 
किसी की उँगली मेरा नम्बर मिलाते हुए 
थक गई हो 
शायद, मेरे जन्मदिन पर 
कोई अपने हाथ में नरगिस के फूल थामे 
मेरा दरवाज़ा खटखटा रहा हो 
शायद, कोई सहेली 
तेज़ बारिश में भीगती हुई 
मेरे लिये लालायित हो 
सोच सोच के मन परेशान होता है 
जाने क्या क्या बिसर जाता है! 

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