जिस धरती की सौगंध खाकर
तुमने प्यार निभाने के वादे किये थे
उस धरती को हमारे लिये क़ब्र बनाया गया है
देश के सारे फूल तोड़कर
बारूद बोया गया है
ख़ुशबू ‘टार्चर’ कैम्प’ में आख़िरी साँसें ले रही है
जिन गलियों में तेरा हाथ थामे
अमन के ताल पर मैंने सदियों से रक्स किया था
वहीं मौत का सौदागर पंख फैला रहा है
गरबी की सलवार, सिलवटों वाला चोला
और सुर्ख लाल दुपट्टा
मैंने संदूक में छिपा रखे हैं
अपनी पहचान को निगलकर, गटक गई हूँ
रास्ते पर चलते
आसमान पर चौदवीं के चाँद को देखकर
मैं तुम्हें भिटाई का बैत सुना नहीं सकती
कलाशंकोफ के धमाकों से मेरा बच्चा
चौंक कर नींद से जाग उठता है
मैं उसे लोरी सुनाने के लिये लब खोलती हूँ तो
घर के सदस्य होंठों पर उँगली रखकर
ख़ामोश रहने के लिये कहते हैं
अख़बारें, डायनों के नाखून बनकर
रोज़ मेरा मांस नोच रही हैं
और सियासतदानों के बयान
रटे हुए तोते समान लगते हैं
मैं खौफ़ की दलदल में हाथ पैर मारना नहीं चाहती
ऐ मेरे देश के सृजनहार
ऐसा कोई अमर गीत लिख
कि जबर की सभी ज़ंजीरें तोड़कर
मैं छम छम छम छम नाचने लगूँ!
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- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
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