मेरे महबूब, मुझे उनसे मुहब्बत है
पर मैं, तुम्हारे आँगन का कुआँ बनना नहीं चाहती
जो तुम्हारी प्यास का मोहताज़ हो
जितना पानी उसमें से निकले तो शफाक़
न खींचो तो बासी हो जाए
मैं बादल की तरह बरसना चाहती हूँ
मेरा अंतर तुम्हारे लिये तरसता है
पर यह नाता जो बंदरिया और
मदारी के बीच में होता है
मैं वो नहीं चाहती
तुम्हारे स्नेह की कशिश मुझे आकर्षित करती है
पर तुम्हारी ख़्वाहिशों के हल में
जोते हुए बैल की तरह फिरना नहीं चाहती
तुम्हारे आँगन के भरम के खूँटे से बंधकर
वफाएँ उच्चारना नहीं चाहती
लूली लंगड़ी सोच से ब्याह रचाकर
अंधे, बहरे और गूंगे बच्चों को जन्म देना नहीं चाहती
मेरे सभी इन्द्रिय बोध सलामत हैं
इसलिये देखती हूँ, सोचती भी हूँ
भूख, दुख और खौफ़ मौत की परछाइयाँ बनकर
मेरे खून में खेल रही हैं
और तुम मेरी आँखों में हया देखना चाहते हो
बाहर जो दर्द की लपटें जल रही हैं
उनकी आँच तो मुझ तक भी आई है
और तुम मेरे चेहरे को गुलाब की तरह
निखरा हुआ देखना चाहते हो
मैं तुम्हारे ख़यालों के कैनवस पर
बनाई गई कोई तस्वीर नहीं हूँ
जिसमें अपनी मर्ज़ी से रंग भरते रहो
और मैं तुम्हारे निर्धारक फ़्रेम से बाहर निकल न पाऊँ
जानती हूँ तुम्हारे बिना मैं कुछ भी नहीं हूँ
मेरे सिवा तुम कुछ भी नहीं हो
मुहब्बत के रस ज्ञान का लुत्फ़ उठाने के लिये
आओ तो एक दूसरे के लिये आईना बन जायें
मेरे बालों में उँगलियाँ फेरते हुए
मुझसे चाँद के बारे में बात न करो
मेरे महबूब मुझसे वो बातें करो
जो दोस्तों से करते हो!
विषय सूची
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- कविता चीख़ तो सकती है
- आईने के सामने एक थका हुआ सच
- अपनी बेटी के नाम
- सफ़र
- ख़ामोशी का शोर
- एक पल का मातम
- सच की तलाश में
- लम्हे की परवाज़
- एक थका हुआ सच
- सपने से सच तक
- तन्हाई का बोझ
- समंदर का दूसरा किनारा
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-
- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
- अनूदित कविता
- पुस्तक चर्चा
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