चलने दो समर भवानी....

15-11-2021

चलने दो समर भवानी....

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 193, नवम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

चलने दो समर भवानी, 
क्रोधानल ज्वाला शांत न हो, 
मन युद्ध देख आक्रान्त न हो, 
मत दो उर-आग में पानी॥
चलने दो समर भवानी....
 
मस्तक रिपु सम्मुख झुके नहीं, 
यह पथिक कभी भी रुके नहीं, 
गहन तिमिर में जीवन के, 
जलने दो प्रखर जवानी, 
चलने दो समर भवानी....
 
चिर संचित सब सपने टूटे, 
आशा के कोमल घट फूटे, 
क्रूर काल ने विहंस विहंस, 
मेरे सारे माणिक लूटे,  
अब बचा हुआ क्या शेष अहो!
किसकी रक्षा हित पीर सहो?
 
अब तो तलवार चले केवल, 
यह ढाल-सुरक्षा किसके हित?
है छिड़ा युद्ध का मरण राग, 
अब जीवन- रक्षा कहाँ उचित?
हो जाए बलिदान शीश का, 
लिखने दो अमर कहानी, 
चलने दो समर भवानी....

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

स्मृति लेख
कविता
गीत-नवगीत
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता - हाइकु
कहानी
बाल साहित्य कविता
किशोर साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में