ये २३ वीं सदी है जनाब
डॉ. उषा रानी बंसल
ये २३ वीं सदी है जनाब
मानव संतति विहीन मानव
हर घर पालतू जानवरों से गुलज़ार!
कुत्ता, बिल्ली, आदि आलीशान महलों में,
आरामदेह बिस्तरों पर,
राजसी ठाठ-बाट से पसरे हैं,
महँगी से महँगी कारों में सैर सपाटा करते हैं,
हुज़ूर चौंके नहीं—ये २३ वीं सदी है।
इनके दस्तरख़ान में प्रतिदिन नये व्यंजन
नये नये रेस्टोरेन्ट से, ऑनलाइन आते हैं,
लज़ीज़ व्यंजन खाते-खाते मुँह का स्वाद बिगड़ गया है,
उनके नख़रे रोज़ नये टेन ट्रम्स दिखाते हैं,
(सुदामा ने द्वारका से लौट कर कहा था कि जहाँ दो जून की रोटी नसीब न थी उसे अब अंगूर भी अच्छे नहीं लगते।)
“के जुरतो नहिं कोदों सवाँ, प्रभु परताप तें दाख न भावत।”
ये २३ वीं सदी है साहिब!
कार से दिशा मैदान जाते हैं,
जहाँ चाहे मूतते, हगते हैं,
मनुष्य/उनका मालिक/नौकर
उनके निपटते ही, उसकी टट्टी उठाने झुक जाता है,
पालतू बड़े शान से अकड़ कर उसे देखता है,
लगता उसके काम से ख़ुश हो शाबाशी दे रहा हो!
आप परेशान न हों ये २३ वीं शताब्दी है।
सब वैसा ही चल रहा था,
जैसा मानव ने सोचा था, चाहा था।
तभी एक कैमिकल, रात के घुप्प अँधेरे में विश्व में फैल गया,
उसने मानव जाति पर गहरा प्रभाव डाला,
जो जहाँ, जिस हाल में था, जड़ हो गया,
ये २३ वीं सदी थी, महाशय घबरायें नहीं!
पालतू अपने हरम से क्रोधाग्नि बरसाते बाहर आये,
उनके मालिक/नौकर बुत थे,
उन्होंने पहले उनको डाँटा-फटकारा,
फिर ज़ोर ज़ोर से भूँकने लगे,
उनकी चुम्मा चाटी की, उनके पैर पड़े,
बुत बुत ही बने रहे, टस से मस न हुए,
हाजत से परेशान पालतू की वहीं निकल गई,
पालतू फिर बुत पर गुर्राया, भौंका, पर बे असर
भूख से व्याकुल बुतों को नोचने, काटने लगा,
सब तरफ़ दुर्गंध फैल गई।
ये २३ वीं सदी थी, महोदय हैरान न हों!
बुत सड़ने गलने लगे, पालतू का जी मिचलाने लगा,
उबकाई ने उसे बेदम सा कर दिया,
उसका दम घुटने लगा,
वह बाहर निकले का रास्ता खोजने लगा,
सब बेकार—
अंत में पूरी ताक़त बटोर कर—
काँच के दरवाज़े पर प्रहार करना शुरू किया,
काँच टूट गया और वह, अचानक,
एक धक्के से सड़क पर जा गिरा,
वह हड़बड़ा कर उठा,
उसने खुली हवा में लम्बी, लम्बी गहरी साँसें लीं,
हिक़ारत से क़ैद को देखा, फिर लम्बे लम्बे डग भरने लगा,
अचानक तेज़ रफ़्तार में बेतहाशा भागने लगा।
अन्तिम संस्कार को जोहते जोहते, बुत सड़ गल गये—
न किसी को क़ब्र, न किसी को दाग-श्मशान नसीब हुई।
ये आने वाली २३ वीं सदी है—मी लार्ड!!!
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- आई बासंती बयार सखी
- आज के शहर और कल के गाँव
- आशा का सूरज
- इनके बाद
- उम्मीद का सूरज
- उलझनें ही उलझनें
- उसकी हँसी
- ऊँचा उठना
- कृष्ण जन्मोत्सव
- चित्र बनाना मेरा शौक़ है
- जाने समय कब बदलेगा
- प्रिय के प्रति
- बिम्ब
- बे मौसम बरसात
- भारत के लोगों को क्या चाहिये
- मैं और मेरी चाय
- मैसेज और हिन्दी का महल
- राम ही राम
- लहरें
- लुका छिपी पक्षियों के साथ
- वह
- वक़्त
- संतान / बच्चे
- समय का क्या कहिये
- स्वागत
- हादसे के बाद
- होने न होने का अंतर?
- होरी है……
- ज़िंदगी के पड़ाव ऐसे भी
- सामाजिक आलेख
- ऐतिहासिक
-
- 1857 की क्रान्ति के अमर शहीद मंगल पाण्डेय
- 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान भारत में उद्योग
- औपनिवेशिक भारत में पत्रकारिता और राजनीति
- पतित प्रभाकर बनाम भंगी कौन?
- भारत पर मुस्लिम आक्रमणों का एक दूसरा पक्ष
- शतरंज के खिलाड़ी के बहाने इतिहास के झरोखे से . . .
- सत्रहवीं सदी में भारत की सामाजिक दशा: यूरोपीय यात्रियों की दृष्टि में
- सोलहवीं सदी: इंग्लैंड में नारी
- स्वतंत्रता आन्दोलन में महिला प्रतिरोध की प्रतिमान: रानी लक्ष्मीबाई
- सांस्कृतिक आलेख
- सांस्कृतिक कथा
-
- इक्कसवीं सदी में कछुए और ख़रगोश की दौड़
- कलिकाल में सावित्री व सत्यवान
- क्या तुम मेरी माँ हो?
- जब मज़ाक़ बन गया अपराध
- तलवार नहीं ढाल चाहिए
- नये ज़माने में लोमड़ी और कौवा
- भेड़िया आया २१वीं सदी में
- मुल्ला नसीरुद्दीन और बेचारा पर्यटक
- राजा प्रताप भानु की रावण बनने की कथा
- रोटी क्या है?: एक क़िस्सा मुल्ला नसीरुद्दीन का
- हास्य-व्यंग्य कविता
- स्मृति लेख
- ललित निबन्ध
- कहानी
- यात्रा-संस्मरण
- शोध निबन्ध
- रेखाचित्र
- बाल साहित्य कहानी
- लघुकथा
- आप-बीती
- यात्रा वृत्तांत
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- बच्चों के मुख से
- साहित्यिक आलेख
- बाल साहित्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-