ये २३ वीं सदी है जनाब 

15-10-2023

ये २३ वीं सदी है जनाब 

डॉ. उषा रानी बंसल (अंक: 239, अक्टूबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

ये २३ वीं सदी है जनाब 
मानव संतति विहीन मानव 
हर घर पालतू जानवरों से गुलज़ार! 
कुत्ता, बिल्ली, आदि आलीशान महलों में, 
आरामदेह बिस्तरों पर, 
राजसी ठाठ-बाट से पसरे हैं, 
महँगी से महँगी कारों में सैर सपाटा करते हैं, 
हुज़ूर चौंके नहीं—ये २३ वीं सदी है। 
 
इनके दस्तरख़ान में प्रतिदिन नये व्यंजन 
नये नये रेस्टोरेन्ट से, ऑनलाइन आते हैं, 
लज़ीज़ व्यंजन खाते-खाते मुँह का स्वाद बिगड़ गया है, 
उनके नख़रे रोज़ नये टेन ट्रम्स दिखाते हैं, 
(सुदामा ने द्वारका से लौट कर कहा था कि जहाँ दो जून की रोटी नसीब न थी उसे अब अंगूर भी अच्छे नहीं लगते।) 
“के जुरतो नहिं कोदों सवाँ, प्रभु परताप तें दाख न भावत।” 
ये २३ वीं सदी है साहिब! 
 
कार से दिशा मैदान जाते हैं, 
जहाँ चाहे मूतते, हगते हैं, 
मनुष्य/उनका मालिक/नौकर 
उनके निपटते ही, उसकी टट्टी उठाने झुक जाता है, 
पालतू बड़े शान से अकड़ कर उसे देखता है, 
लगता उसके काम से ख़ुश हो शाबाशी दे रहा हो! 
आप परेशान न हों ये २३ वीं शताब्दी है। 
 
सब वैसा ही चल रहा था, 
जैसा मानव ने सोचा था, चाहा था। 
तभी एक कैमिकल, रात के घुप्प अँधेरे में विश्व में फैल गया, 
उसने मानव जाति पर गहरा प्रभाव डाला, 
जो जहाँ, जिस हाल में था, जड़ हो गया, 
ये २३ वीं सदी थी, महाशय घबरायें नहीं! 
 
पालतू अपने हरम से क्रोधाग्नि बरसाते बाहर आये, 
उनके मालिक/नौकर बुत थे, 
उन्होंने पहले उनको डाँटा-फटकारा, 
फिर ज़ोर ज़ोर से भूँकने लगे, 
उनकी चुम्मा चाटी की, उनके पैर पड़े, 
बुत बुत ही बने रहे, टस से मस न हुए, 
हाजत से परेशान पालतू की वहीं निकल गई, 
पालतू फिर बुत पर गुर्राया, भौंका, पर बे असर 
भूख से व्याकुल बुतों को नोचने, काटने लगा, 
सब तरफ़ दुर्गंध फैल गई। 
ये २३ वीं सदी थी, महोदय हैरान न हों!
 
बुत सड़ने गलने लगे, पालतू का जी मिचलाने लगा, 
उबकाई ने उसे बेदम सा कर दिया, 
उसका दम घुटने लगा, 
वह बाहर निकले का रास्ता खोजने लगा, 
सब बेकार—
अंत में पूरी ताक़त बटोर कर—
काँच के दरवाज़े पर प्रहार करना शुरू किया, 
काँच टूट गया और वह, अचानक, 
एक धक्के से सड़क पर जा गिरा, 
वह हड़बड़ा कर उठा, 
उसने खुली हवा में लम्बी, लम्बी गहरी साँसें लीं, 
हिक़ारत से क़ैद को देखा, फिर लम्बे लम्बे डग भरने लगा, 
अचानक तेज़ रफ़्तार में बेतहाशा भागने लगा। 
अन्तिम संस्कार को जोहते जोहते, बुत सड़ गल गये—
न किसी को क़ब्र, न किसी को दाग-श्मशान नसीब हुई। 
ये आने वाली २३ वीं सदी है—मी लार्ड!!! 

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