एक आप बीती
डॉ. उषा रानी बंसल
बात १९७१ की मई-जून के महीने की होगी। मेरी ससुराल मथुरा थी। मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि से दस क़दम पहले, उसके सामने वाले टीले पर जगन्नाथ पुरी कॉलोनी है। वहीं पर मेरे सास, श्वसुर ने कोठी बनाई थी। सड़क से काफ़ी चढ़ाई थी जैसा कि टीले शब्द से पता चलता है। मेरे श्वसुर जी को दिल का दौरा पड़ गया। उन्हें वृंदावन के मिशनरी अस्पताल में भर्ती कराया गया। मेरी दोनों ननद, ताया श्वसुर बारी-बारी से आ कर सहायता करते रहे। उनके घर आने के बाद सब चले गये। घर पर मैं, सास जी, हमारी डेढ़ साल की बेटी और पतिदेव व श्वसुर जी रह गये। क़रीब दस दिन बाद मेरी सास का न्युरोबीयोन का इन्जेक्शन, जो कूल्हे में लगता था, पक गया। उनको वृंदावन के अस्पताल में दाख़िल कराना पड़ा। अब दो व्यक्ति बीमार हो गये एक सास जी, जो अस्पताल में थीं दूसरे श्वसुर जी जो घर पर थे। पतिदेव दिन में अस्पताल में रहते थे और मैं रात में। उस समय यातायात के साधन बहुत कम थे। धन भी ख़र्च करने को कम ही था।
एक दिन शाम को घर पर खाना बना कर, रख कर बेटी को गोद में लेकर, कंधे पर खाने का सामान थैले में लेकर, टीले से उतर कर मसानी, (स्थान का नाम) जो टीले से उतरने पर एक किलोमीटर है, पैदल चलकर जाना पड़ता था, वहाँ से अस्पताल के लिये साझा टेम्पो मिलता था, टेम्पो अड्डे पहुँची। टेम्पो वाले प्रतिदिन जाने वाली सवारियों को पहचान लेते हैं। अतः एक टेम्पो में बैठने की जगह मिल गई। अभी टेम्पो लुटेरे हनुमान (प्रसिद्ध स्थान) तक पहुँचा तो उधर से आने वाले टेम्पो वाले ने बताया कि आगे पुलिस ओवरलोडिंग चैकिंग करने को नाका बंदी किये बैठी है। उसने आनन फ़ानन में मुझ और दो तीन सवारियों को उतरने को कहा और तेज़ी से टेम्पो लेकर चला गया। एक तो लुटरे हनुमान, वह स्थान उस समय लूटमार के लिये प्रसिद्ध था, ऊपर से गोद में बेटी कंधे पर खाना, वहाँ से पतिदेव के लौटने में विलम्ब की बात ने बहुत डरा दिया। पर मरता क्या न करता, पैदल चल दिए। जब पुलिस की अस्थायी चौकी तक पहुँचे तो जाकर पुलिस वालों से कहा कि, “जो टेम्पो अभी गया है, मैं उसमें थी।” मैंने अपना सारा दुखड़ा भी कहा, और फिर कहा, “आप प्रतिदिन चैकिंग क्यों नहीं करते, टैम्पो अड्डे पर ही पोस्ट बिठानी चाहिए, यह क्या तरीक़ा है? परेशान तो सवारी हो रही हैं।” जाने और क्या क्या कह डाला।
पुलिस वाले ने कहा, “आप कुर्सी पर बैठिए हम जाँच करते हैं। पानी पिएँगी?”
“आप को पानी की पड़ी है, मुझे देर हो रही है।”
पुलिस वाले ने कहा कि चलिए आपको पुलिस जीप से पहुँचा देते हैं। मन ने कहा भरोसा मत कर। तभी एक टेम्पो आया। पुलिस वाले ने उसे रोक कर मुझे अस्पताल के अंदर तक छोड़ कर आने का आदेश दिया।
जैसी कि हमारे मन में पुलिस के बारे में आम धारणा है कि वह करते-धरते कुछ नहींं, नाहक़ पैसा वसूलने के लिये जनता को तंग करते हैं। उससे उनका कोई मतलब नहींं होता?
अगले दिन जब मैं मसानी अड्डे पर टेम्पो करने गई तो वहाँ टेम्पो वालों ने बताया कि कल वह टेम्पो वाला पुलिस से बचने के लिए छटीकरा, लम्बा रास्ता लेकर गया, फिर भी पुलिस ने उसे पकड़ ही लिया। सारे टेम्पो वाले मुझे पहचान गये।
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