मृणालनी
डॉ. उषा रानी बंसलजब जानकी का रिटायरमेंट हो गया तो समय बिताने के ख़्याल से पास के एक जिम में जाना शुरू कर दिया। लड़कियों/औरतों के लिये जिम का समय १०-३ बजे से होता था। बाक़ी समय लड़कों/पुरुषों के लिये था। अब सुबह जल्दी नाश्ता करना होता था। दस बजे तक घर के काम से निबट कर, एक थैले में जिम का सामान, कुछ मिठाई, सुगर नापने की मशीन ले कर जिम जाने लगी। पहला दिन बड़ा अजीब था। जब वह जिम के ऑफ़िस में गई और जिम करने की इच्छा व्यक्त की तो कुछ देर के लिये वहाँ सन्नाटा छा गया। उन्होंने जिम करने का उद्देश्य पूछा। जानकी ने कहा था कि कुछ व्यायाम करना ही मेरा उद्देश्य है। इससे पहले कभी समय ही नहीं मिला। इस उम्र में जिम करेंगी देख लीजिये?
ख़ैर जानकी को प्रवेश दे ही दिया गया। वहाँ पर आने वाली प्रशिक्षकों में एक लड़की इन्टर पास थीं। वह प्राइवेट बीए करना चाहती थी। पर उसे अंग्रेज़ी नहीं आती थी। वह जिम की मशीनों का प्रयोग सिखाते समय जानकी से अंग्रेज़ी के कुछ शब्द सीखने लगी।
जिम में आने वाली ज़्यादातर महिलायें तीस के आस-पास की थीं जो अपना वज़न कम करना चाहती थीं। एक-दो घंटे जिम करती थीं। उन सबमें एक लड़की ने विशेष तौर पर जानकी का ध्यान अपनी ओर खींचा। वह २०-२५ साल की रही होगी पर बहुत दुबली थी। जिम वाला उसे बहुत ध्यान से व्यायाम कराता था। वह कुछ मोटा होने के लिये टॉनिक भी वहाँ से लेती थी। एक दिन जानकी ने उस से पूछ ही लिया कि आप इतनी स्मार्ट हो फिर मोटा क्यों होना चाहती हो? आजकल तो सबको पतलों को पसंद करते हैं। देखती हो, यहाँ कितने लोग पतले होने के लिये जिम करते हैं, पसीना बहाते हैं, ऐरोबिक्स करते हैं।
वह कहने लगी, "यह तो सब ठीक है पर मेरे जितना पतला नहीं। मेरे माता -पिता जहाँ भी सम्बंध की बात चलाते हैं वहाँ से यही उत्तर आता है कि लड़की ज़रूरत से अधिक दुबली है।"
ऐसा कहते वह बहुत उदास हो गई। जानकी के विचार से उसका वज़न ३०-३५ किलो रहा होगा। ५ किलो बढ़ाने की बात होगी। जानकी सोचने लगी कि जब उसकी शादी के लिये माता-पिता लड़का खोज रहे थे तो दो-तीन परिवार वालों ने कह कर रिश्ता टाल दिया कि लड़की कुछ मोटी है। जब कि उस समय जानकी का वज़न मात्र ४६ किलो/१०० पौंड था। पता नहीं पतले-मोटे लगने का अपना ही गणित है।
उस की व्यथा सुन कर मन कुछ भारी हो गया। उसी में जानकी को अपनी एक भूली बिसरी सहेली याद आ गई। वह महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज से अर्थशास्त्र में शोध कर रही थी। साड़ी बड़े सलीक़े से पहनती थीं। गेहुँआ खिलता रंग था। आँखें भी बड़ी पर खोई-खोई सी थीं। लाइब्रेरी आते जाते उससे मुलाक़ात होने लगी। तभी उसका नाम भी पता चला। उसका नाम था मृणालिनी था। वह कमल की नाल की तरह नाज़ुक सी लगती थी। धीरे-धीरे उससे दोस्ती हो गई। जैसा अधिकतर होता है कि सहेलियाँ अपना दुख-दर्द साझा करने लगती हैं। जानकी का भी वही हुआ। कभी-कभी कॉलेज से लगे एक मन्दिर की कैंटीन में हम समोसा खाने चले जाते। कॉलेज के सामने रानी की बग़ीचा था। वहाँ सर्दी में कई बार अमरूद खाने भी चले जाते थे।
बातचीत में पता चला कि मृणालिनी के पिता किसी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर हैं। वह अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ रह कर शोध कर रही थी। उसकी शादी एक अध्यापक से हुई थी। शादी के समय भी वह ऐसी ही थीं। लड़के वालों ने कहा कि बाक़ी तो सब ठीक पर ‘लड़की बहुत दुबली है’। इस को लेकर कई माह तक बातचीत होती रही। कुछ का कहना था कि “पतला होना तो अच्छी बात है। देखने में आता है कि शादी के बाद कैसी पतली-पतली लड़कियाँ फूल कर कुप्पा हो जाती हैं।” शादी के बाद लड़के-लड़कियाँ सभी के डीलडौल में बदलाव आता ही है। बच्चा होने के बाद और फ़र्क़ पड़ जायेगा। किसी ने कहा कि, ’वर का पानी लगते ही पतली से पतली मुटा जाती हैं’। सब मिला-जुला कर शादी तय हो गई। शादी के बाद बहू को घी-मक्खन या कहिये तर माल, दूध-मलाई, रबड़ी, मिठाई भरपूर खिलाई जाती। पर क्या मजाल की एक छटाँक भी मांस चढ़ा नज़र आये। इसी बीच मृणालिनी पेट से हो गई। अब तो सबको पूरी उम्मीद थी कि बच्चा होने के बाद वह फूल जायेगी। समय आने पर उसने एक प्यारी सी लक्ष्मी को जन्म दिया। घर भर ख़ुश था। पहला बच्चा जो घर में आया था। जच्चा की ख़ातिरदारी में कोई कमी नहीं रखी गई। पर हाय रे भाग्य! जब पहली सौरी के बाद बहुएँ फुटबॉल सी फूल जाती हैं, मृणालनी ज्यों की त्यों रह गईं। एक महीने बाद बच्ची के नामकरण के बाद मृणालनी को लेने मायके से भाई आ गया। माँ बिटिया दोनों माता-पिता के यहाँ चली गईं।
एक-एक कर चार माह बीत गये पर ससुराल से लिवाने कोई नहीं आया। ख़बर भेजने पर, किसी न किसी तरह बात टालते रहते। एक दिन मृणालिनी के पिता लड़की की ससुराल चले गये। वहाँ सबने बड़े आदर से उनका स्वागत किया। परन्तु जब मृणालिनी को वापस ससुराल बुलाने की बात कही तो सब बग़लें झाँकने लगे। मृणालिनी के पिता प्रोफ़ेसर थे, उन्हें कुछ दाल में काला नज़र आया। उन्होंने लड़के के पिता से अलग से बात की। वह कहने लगे, "हम तो बहू को लाने को तैयार हैं, मोटा-पतला होना कोई बड़ी बात नहीं है . . ." कह कर चुप हो गये। प्रोफ़ेसर साहब के बात पूरा करने का दबाव डालने पर सकुचाते से बोले, "मेरा लड़का कहता है कि . . .आलिंगन करने में कुछ तो . . ." कह कर चुपचाप उठ कर चले गये।
प्रोफ़ेसर साहब वापस आ गये। अधिक समय गँवाये बिना आपसी सहमति से विधिवत शादी विच्छेद करा दिया। प्रोफ़ेसर साहब ने मृणालिनी को उसके पैरों पर खड़ा करने के लिये उसे ग्वालियर में अपने रिश्तेदार के यहाँ भेज कर पीएच. डी. शोध करने भेज दिया।
जानकी ने स्नातकोत्तर शिक्षा पूरी होने पर, ग्वालियर छोड़ दिया। पर मृणालिनी का दुख व उसकी सलोनी सूरत मन में बसी रही। दुनिया भी क्या निराली है, कोई मोटी पर अटका है, मोटी या मोटा सबकी हँसी का पात्र बनता है, वहीं तो कोई पतली से ख़फ़ा है। मांस की परत की नाप-तौल कर तो लड़के-लड़कियाँ युवा नहीं होते। सोच-सोच का अंतर है। यह कोई सोना या तरकारी तो नहीं है जिससे हड्डी पर मांस नाप कर चढ़ाया जाये?
धीरे-धीरे उसकी याद केवल याद रह गई। अचानक एक दिन ट्रेन में जानकी को एक महिला मिलीं। वह किसी मृणालिनी, जो रायपुर में अर्थशास्त्र की प्रवक्ता थीं उसकी प्रशंसा कर रही थी। वह उनके पढ़ाने व व्यक्तित्व की बहुत प्रशंसक थीं; तब जानकी को मृणालिनी के बारे में पता चला। उसका मन ख़ुश हो गया।
1 टिप्पणियाँ
-
No System is ideal. every one has its own pros & Cons. further clarification I will send on monday. ( beautifull wife is an headache for husband?0
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- आई बासंती बयार सखी
- आज के शहर और कल के गाँव
- आशा का सूरज
- इनके बाद
- उम्मीद का सूरज
- उलझनें ही उलझनें
- उसकी हँसी
- ऊँचा उठना
- कृष्ण जन्मोत्सव
- चित्र बनाना मेरा शौक़ है
- जाने समय कब बदलेगा
- प्रिय के प्रति
- बिम्ब
- बे मौसम बरसात
- भारत के लोगों को क्या चाहिये
- मैं और मेरी चाय
- मैसेज और हिन्दी का महल
- राम ही राम
- लहरें
- लुका छिपी पक्षियों के साथ
- वह
- वक़्त
- संतान / बच्चे
- समय का क्या कहिये
- स्वागत
- हादसे के बाद
- होने न होने का अंतर?
- होरी है……
- ज़िंदगी के पड़ाव ऐसे भी
- सामाजिक आलेख
- ऐतिहासिक
-
- 1857 की क्रान्ति के अमर शहीद मंगल पाण्डेय
- 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान भारत में उद्योग
- औपनिवेशिक भारत में पत्रकारिता और राजनीति
- पतित प्रभाकर बनाम भंगी कौन?
- भारत पर मुस्लिम आक्रमणों का एक दूसरा पक्ष
- शतरंज के खिलाड़ी के बहाने इतिहास के झरोखे से . . .
- सत्रहवीं सदी में भारत की सामाजिक दशा: यूरोपीय यात्रियों की दृष्टि में
- सोलहवीं सदी: इंग्लैंड में नारी
- स्वतंत्रता आन्दोलन में महिला प्रतिरोध की प्रतिमान: रानी लक्ष्मीबाई
- सांस्कृतिक आलेख
- सांस्कृतिक कथा
-
- इक्कसवीं सदी में कछुए और ख़रगोश की दौड़
- कलिकाल में सावित्री व सत्यवान
- क्या तुम मेरी माँ हो?
- जब मज़ाक़ बन गया अपराध
- तलवार नहीं ढाल चाहिए
- नये ज़माने में लोमड़ी और कौवा
- भेड़िया आया २१वीं सदी में
- मुल्ला नसीरुद्दीन और बेचारा पर्यटक
- राजा प्रताप भानु की रावण बनने की कथा
- रोटी क्या है?: एक क़िस्सा मुल्ला नसीरुद्दीन का
- हास्य-व्यंग्य कविता
- स्मृति लेख
- ललित निबन्ध
- कहानी
- यात्रा-संस्मरण
- शोध निबन्ध
- रेखाचित्र
- बाल साहित्य कहानी
- लघुकथा
- आप-बीती
- यात्रा वृत्तांत
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- बच्चों के मुख से
- साहित्यिक आलेख
- बाल साहित्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-