आई बासंती बयार सखी

14-03-2015

आई बासंती बयार सखी

डॉ. उषा रानी बंसल

सखियो ऋतु बसंत की है आई
बादलों के नरम बिस्तर
कोहरे की रजाई से झाँक कर
सूरज ने ली अँगड़ाई
सखि बसंती बहार है आई...

 

गुनगुनी धूप पाकर
धरती देखो कैसे इठलाई
धरती देखो कैसे मुसकाई
हरा लहंगा पीली चूनर
सरसों ने धरती को उढ़ाई
देखो सखी बसंत की सुषमा छाई...

 

टेसू चटका, फूला पलाश,
अमलताश में कलियाँ आईं
गेंहू, जौ में बालियाँ लहर लहर लहराईं
कनक कनक की सवर्णिम आभा
वसुंधरा का शृगांर बनी
दुल्हिन अवनी को देख देख,
पंचम सवर में गाया गान
होरी, चैती लगे गुदगुदाने
फागुन के गीत भी हवा में लहराये,
सखि बसंत का ऐसा जादू चला कि-
बयार भी फाग खेलने लगी
सखि ऋतु बसंत की आई...

 

फागुनी गुनगुनी धूप में
मधुमास ने मौसम संग रास रचाया
कैसे देखो अंग अंग अलसाया.
सखि बसंत की खुमारी में
बिरहन को पी की याद आई
तन मन में बसंत ने अगन लगाई
देखो सखि बसंत कैसे कैसे तरसाने आया...

बसंत ने कैसे कैसे चित्र बनाये
निराली छटा बसंत की सखी छाई!

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