सबसे अच्छा क्या लगा? ‘पानी’
डॉ. उषा रानी बंसल
कुछ साधारण सी बात, साधारण तरीक़े से कही भी सदैव मस्तिष्क के कम्प्यूटर में सुरक्षित रहती है। कुछ मिलती-जुलती सी बात होते ही पुरानी यादें मन पर छा जाती हैं। ऐसा ही खाना खाते हुए कई बार हुआ। हमारी बहू नीतू ने कचौड़ी, कोहडे़ की सब्ज़ी, मूली अदरक के लच्छे की सलाद, बूँदी का रायता बनाया था। साथ में गोल-गोल लच्छे वाली प्याज़ पर मसाला डाला था। सब खाना खा रहे थे, जैसा हमेशा होता है बनाने वाली प्रशंसा कर कहते हैं कि खाना बहुत स्वादिष्ट है। पेट तो भर गया मन नहीं भरा। फिर भी बनाने वाला यह पूछे बिना संतुष्ट नहीं हो पाता कि सबसे अच्छा क्या लगा? जब सब अच्छा लगा हो तब इस प्रश्न का उत्तर देना कठिन हो जाता है। ऐसे ही प्रश्न के उत्तर में एक बार हमारे बेटे आशीष के मित्रों की दावत में उसके एक दोस्त अमित जोशी ने कहा कि, “प्याज़,” तब सबने उसकी बहुत खिंचाई की थी। हमारे बेटे ने वहीं खाना खाते हुए मेरे कान में “अमित, प्याज़” फुसफुसाया। हम मुस्कुरा कर रह गये, ये मेरी व उसकी याद जो थी।
ऐसे ही अपने विवाह के बाद जब हम माँ के यहाँ गये तो वहाँ से रिवाज़ के अनुसार हमारी, मौसी, भाभी, जो अलग रहती थीं, आदि ने खाने पर बुलाया। बताते चलें मेरी ससुराल मथुरा में है। वहाँ का पानी बेहद खारा है। यह जग ज़ाहिर है। वृंदावन का पानी मीठा है। मेरे भाई, भाभी ने हमें दोपहर के भोजन पर आमंत्रित किया। बहुत प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाये। प्रचलित तरीक़े से, भाई ने बड़े प्यार से मुझ से पूछा कि सबसे अच्छा क्या लगा? मेरे मुँह, से अचानक निकला, “पानी।” भाई भाभी अवाक् मेरा मुँह देखने लगे। तब मुझे अपने पर बहुत लज्जा आई। पर तीर कमान से निकल चुका था।
२०२३ के मई महीने में मैं अपनी ननद के यहाँ ग़ाज़ियाबाद गई। मेरी भाभी का घर उनके यहाँ से क़रीब एक किलोमीटर पर है। मेरी भाभी बहुत बीमार थीं अतः उनसे मिलने का बहुत मन था। भाभी की बहू ने मुझे बड़े आग्रह से घर (मायके)। आने का आमंत्रण दिया। मन में जाने कहाँ से कौंधा कि क्या अब भी वहाँ का पानी उतना ही मीठा होगा? क़रीब क़रीब ५० साल में पानी की तासीर बदल तो न गई होगी। इसी तरह के विचारों में उतरती तैरती मैं मायके भाभी से मिलने गई। भाभी सुषमा की बहू रितु ने बड़ी गरम जोशी से स्वागत किया। भतीजे, के बेटा बेटी, बड़ी भतीजी आदि से मिल कर मैं भाभी के कमरे में गई। भाभी बड़ी अधीरता से मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। ननद-भावज मिले, कुछ समय हाल चाल पूछने में लगा फिर भाभी वह बातें याद करने लगी जब वह १७-१८ वर्ष की आयु में बहू बन कर आई थी। और मैं भी १४-१५ की रही होऊँगी। हमारी सहेलियों व भाभी ननद की छेड़खानी की बातें दोहराने लगीं। परिवार में कौन कहाँ है? सब के बारे में बताया, कुछ खट्टा कुछ मीठा था सब! इसी बीच रितु व बच्चों ने तरह-तरह के नाश्ते से मेज़ सजा दी। भाभी ने जो बताया होगा, उसी प्रकार के बचपन की रुची वाले व्यंजन भी वहाँ दिख रहे थे। तभी भतीजा पानी का गिलास ले कर आया और बोला, “बुआ पानी।” मैं जैसे चौंक पड़ी! पानी का गिलास मुँह से लगाया ही था कि याद का पिटारा बोला, ‘पी कर देख पानी कैसा है।’ मैंने तुरंत पानी पिया, मेरे आश्चर्य का ठिकाना न था कि वह पानी अब भी उतना ही मीठा था, जितना उस दावत के दिन था।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- आई बासंती बयार सखी
- आज के शहर और कल के गाँव
- आशा का सूरज
- इनके बाद
- उम्मीद का सूरज
- उलझनें ही उलझनें
- उसकी हँसी
- ऊँचा उठना
- कृष्ण जन्मोत्सव
- चित्र बनाना मेरा शौक़ है
- जाने समय कब बदलेगा
- प्रिय के प्रति
- बिम्ब
- बे मौसम बरसात
- भारत के लोगों को क्या चाहिये
- मैं और मेरी चाय
- मैसेज और हिन्दी का महल
- राम ही राम
- लहरें
- लुका छिपी पक्षियों के साथ
- वह
- वक़्त
- संतान / बच्चे
- समय का क्या कहिये
- स्वागत
- हादसे के बाद
- होने न होने का अंतर?
- होरी है……
- ज़िंदगी के पड़ाव ऐसे भी
- सामाजिक आलेख
- ऐतिहासिक
-
- 1857 की क्रान्ति के अमर शहीद मंगल पाण्डेय
- 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान भारत में उद्योग
- औपनिवेशिक भारत में पत्रकारिता और राजनीति
- पतित प्रभाकर बनाम भंगी कौन?
- भारत पर मुस्लिम आक्रमणों का एक दूसरा पक्ष
- शतरंज के खिलाड़ी के बहाने इतिहास के झरोखे से . . .
- सत्रहवीं सदी में भारत की सामाजिक दशा: यूरोपीय यात्रियों की दृष्टि में
- सोलहवीं सदी: इंग्लैंड में नारी
- स्वतंत्रता आन्दोलन में महिला प्रतिरोध की प्रतिमान: रानी लक्ष्मीबाई
- सांस्कृतिक आलेख
- सांस्कृतिक कथा
-
- इक्कसवीं सदी में कछुए और ख़रगोश की दौड़
- कलिकाल में सावित्री व सत्यवान
- क्या तुम मेरी माँ हो?
- जब मज़ाक़ बन गया अपराध
- तलवार नहीं ढाल चाहिए
- नये ज़माने में लोमड़ी और कौवा
- भेड़िया आया २१वीं सदी में
- मुल्ला नसीरुद्दीन और बेचारा पर्यटक
- राजा प्रताप भानु की रावण बनने की कथा
- रोटी क्या है?: एक क़िस्सा मुल्ला नसीरुद्दीन का
- हास्य-व्यंग्य कविता
- स्मृति लेख
- ललित निबन्ध
- कहानी
- यात्रा-संस्मरण
- शोध निबन्ध
- रेखाचित्र
- बाल साहित्य कहानी
- लघुकथा
- आप-बीती
- यात्रा वृत्तांत
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- बच्चों के मुख से
- साहित्यिक आलेख
- बाल साहित्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-