नये ज़माने में लोमड़ी और कौवा 

01-12-2023

नये ज़माने में लोमड़ी और कौवा 

डॉ. उषा रानी बंसल (अंक: 242, दिसंबर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

लोमड़ी को कई बार अपनी रोटी खिलाने के बाद कई जन्म ले कर धीरे-धीरे कौवा बुद्धिमान हो गया। आज के ज़माने में कौए को एक दिन घूमते-घूमते बड़ी सी रोटी मिल गई और वह रोटी लेकर डाल पर बैठ कर उसे खाने की सोच ही रहा था कि तभी वहाँ से एक लोमड़ी निकली। लोमड़ी बहुत भूखी थी, उसने सोचा कि आज कौए को बुद्धू बना कर उसकी रोटी छीन लूँगी। इसलिए वह लोमड़ी पेड़ के नीचे गयी, और कहने लगी, “कौए भाई, कौए भाई कैसे हो? भाई तुम तो बहुत अच्छा गाना गाते हो। मैंने तुम्हारा गाना बहुत दिनों से नहीं सुना। तुम मुझे गाना सुनाओ, तुम्हारी आवाज़ कितनी मधुर है।”

लोमड़ी की बात सुनकर कौआ बहुत ख़ुश हो गया और उसने सोचा कि चलो कोई तो मेरा गाना सुनना चाहता है। एक बार गा ही लूँ। लेकिन इस बार वह लोमड़ी की चालाकी समझ गया था, और उसने मुँह खोलने से पहले रोटी को अपने पंजों में दबा लिया और गाना गाने लगा . . . काँव काँव काँव . . . काँव . . .। गाना गाते हुए भी रोटी का टुकड़ा पंजों में दबा था। 

लोमड़ी थोड़ी देर तक ऊपर देखती रही लेकिन जब उसने देखा है कि रोटी तो उसके पंजों में फँसी है तो अपना-सा मुँह लेकर चली गई। 

तो आप इसका अर्थ इसे समझ गए होंगे कि बहुत समय तक आप किसी को बेवुक़ूफ़ नहीं बना सकते वो भी बुद्धिमान हो सकता है। वैसे कौआ रोटी सदा पंजों में दबा कर चोंच से खाता है। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
सामाजिक आलेख
ऐतिहासिक
सांस्कृतिक आलेख
सांस्कृतिक कथा
हास्य-व्यंग्य कविता
स्मृति लेख
ललित निबन्ध
कहानी
यात्रा-संस्मरण
शोध निबन्ध
रेखाचित्र
बाल साहित्य कहानी
लघुकथा
आप-बीती
यात्रा वृत्तांत
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
बच्चों के मुख से
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में