चित्र बनाना मेरा शौक़ है

04-09-2014

चित्र बनाना मेरा शौक़ है

डॉ. उषा रानी बंसल

चित्र बनाना मेरा शौक़ है, 
जब भी मन दुखी या उदास होता है, 
अकेलापन काटने को दौड़ता है, 
मैं काग़ज़ पर आड़ी-तिरछी रेखायें खींचतीं हूँ 
और ये देख देख कर-आवाक् रह जाती हूँ कि, 
ये रेखायें प्रकृति के कैसे कैसे गहन रहस्य खोलती हैं। 
काग़ज़ सी धरा पर ये रेखायें, 
सीधे, आड़े, लम्बे, खड़े, झुके वृक्ष, 
नदी, नाले, पहाड़, सागर, 
रेगिस्तान, पठार, सुरंग, व
नाना प्रकार के जीव-जन्तुओं का—
एक अदभुत सा कोलाज बनाती हैं। 
 
यूँ तो चित्र बनाना मेरा शौक़ है पर—
वास्तव में इस प्राकृतिक कोलाज को देखने का, 
एक बहाना भी है
या फिर प्रकृति से निकटता का माध्यम, 
अथवा-उससे मेरा संवाद क़ायम करना, 
कुछ भी हो, पर बड़ा रिझाता है, लुभाता है मुझे। 
अनायास ही तूलिका काग़ज़ रँगने लगती है, 
जो कभी कलियाँ, कभी फूल, कभी तितली, 
कभी भौंरे बन गुनगुनाने लगते हैं। 
 
यूँ तो चित्र बनाना मेरा शौक़ है पर—
निरभ्र नील गगन, 
आकाश में—पंक्तियों में उड़ते परींदे, 
घर लौटते पक्षियों के दल, 
चहचहातीं असंख्य चिड़ियाओं का झुंड 
सब कैनवस पर एक अक्स बन रह जाता है। 
 
यूँ तो चित्र बनाना मेरा शौक़ है पर—
नीले आकाश में—
लाल, नीले, पीले, काले बादल, 
उमड़ते-घुमड़ते मेघों के बदलते रंग-रूप, 
बादलों में बनते पहाड़, ज्वालामुखी, भालू, 
पल पल बदलती चंचल आकृतियों का, 
तूलिका उठाने से पहिले ही बदल जाना, 
एक आँख मिचौली का खेल सा होता है। 
 
यूँ तो चित्र बनाना मेरा शौक़ है पर—
प्रकृति को चित्रित करने का शौक़
अनायास ही उस चितेरे की कल्पना में खो जाता है, 
जिसकी रचनायें प्रतिक्षण नये नये रंग-रूप में, 
इन्द्रधनुषी छटा बिखेर, 
मन मोहित कर, 
मन हर लेती हैं। 
प्राणवान–चेतन, स्पदिंत, स्फुरित रचनायें—
रंगों, चित्रों, व तूलिका की लक्ष्मण रेखा खींच देती हैं –
और, मेरा मन उस चितेरे की वदंना करने लगता है। 
चित्र बनाना मेरा शौक़ है पर—
वह ख़ुद ब ख़ुद उसका भजन बन जाता है। 

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