आशा का सूरज

01-01-2022

आशा का सूरज

डॉ. उषा रानी बंसल (अंक: 196, जनवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

आज सुबह से ग़म के बादल घिरे हैं, 
कभी थम-थम के कभी गरज गरज कर, 
कभी टीस की चीत्कार कर, 
मूसल से बरस रहे हैं, 
मानो! आशा की किरण को, 
ग़म की चादर लील गई हो, 
पर उम्मीद, आशा के उजास ने, 
लंबी जद्दोजेहद कर, 
एक नई रोशनी में, 
नया जोश, नई उर्जा की सृष्टि कर दी, 
चमक कर ग़म के बादल छट गए, 
आशा का नया सूरज चमकने लगा। 

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