जब मज़ाक़ बन गया अपराध 

15-12-2023

जब मज़ाक़ बन गया अपराध 

डॉ. उषा रानी बंसल (अंक: 243, दिसंबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

एक समय की बात है कि दो पड़ोसी थे। जिनमें से एक, अधिक बूढ़ा था और दूसरा उससे कम उमर का था। कम उमर वाले ने एक दिन, सबसे कह दिया कि ये वाला पड़ोसी चोर है। अब तो उनकी बड़ी बदनामी हो गयी और उन्हें पुलिस पकड़ कर ले गई। उन्हें पुलिस ने जेल में डाल दिया। वह व्यक्ति बहुत सज्जन था। उन्होंने तो कभी किसी के लिये भी अपशब्दों का प्रयोग भी नहीं किया था, चोरी करना तो बहुत दूर की बात थी। वह तो ऐसा कभी मज़ाक़ में भी नहीं सोच सकते थे। मोहल्ले के और कॉलोनी के किसी भी अन्य व्यक्ति ने उनके बारे में कोई शिकायत पुलिस में नहीं की, तब पुलिस ने जाँच-पड़ताल की। पुलिस ने पाया कि उन्होंने तो कभी कोई चोरी नहीं की थी। पुलिस ने उन्हें जेल से रिहा कर दिया। 

जेल से रिहा होने के बाद उस व्यक्ति ने अदालत में दूसरे व्यक्ति के ख़िलाफ़ मानहानि का मुक़दमा दायर किया। उसने आरोप लगाया था कि इस व्यक्ति ने उस पर ऐसा आरोप लगा कर बदनामी की है, और अपराधी बनाया, जो अपराध उसने कभी किया ही नहीं था। उसकी शिकायत करने पर कोर्ट में उस चोरी का आरोप लगाने वाले को बुलाया गया। जब उस पर लगा अभियोग सुनाया गया तो उस व्यक्ति ने हँसते हुए कहा कि यह तो एक केवल एक मज़ाक़ था जिसकी कोई सज़ा नहीं हो सकती। जज साहब ने कहा कि उन्होंने सज़ा की बात की ही नहीं . . .

जज साहब ने उसे एक काग़ज़ और पेन दिलवा कर कहा कि, “इस काग़ज़ पर वह सब लिख सकते हो जो आपने उस व्यक्ति के बारे में कहा था।” वह लिखने को तैयार हो गया। जब उसने सब लिख दिया तो जज साहब ने कहा कि इसके टुकड़े-टुकड़े कर दो। जब उसने उसके टुकड़े कर दिए तो जज साहब ने कहा कि और छोटे-छोटे टुकड़े कर दें। अब कार से जब घर जाओगे तो उन टुकड़ों को कार की खिड़की से उड़ाते हुए चले जाना और कल फिर कोर्ट में उपस्थित होना। जब अगले दिन वह अदालत में गया तो जज साहब ने कहा, “जो टुकड़े आपने कल कार की खिड़की से उड़ाये थे उन्हें आज बटोर कर ले आओ!” 

वह हँसते हुए बोला, “उन टुकड़ों को तो हवा उड़ा कर ले गई। उनको कौन बटोर सकता है? आप भी क्या बात कर रहे हैं!”

 जज साहब ने कहा, “उस सज्जन व्यक्ति का मान-सम्मान आपने ऐसे ही मज़ाक़ में उड़ा दिया। 

“क्या आप उसको वापस लौटा सकते हैं, कोई भी कैसे लौटा सकता है? आपके के लिये यह मज़ाक़ की बात थी, परन्तु उसकी तो बदनामी हो गई।

“कभी किसी से मज़ाक़-मज़ाक़ में भी ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, जिससे किसी का अपमान होता है या समाज में बदनामी हो। वह व्यक्ति किस-किस को उसकी सफ़ाई देता रहेगा। कोई विश्वास करेगा कोई नहीं। हमेशा अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए।” 

कहानी से सीख: 

  1. शब्दों का प्रयोग सोच समझकर करें, कमान से निकला तीर और ज़बान से निकली बात कभी वापस नहीं लौटाई जा सकती चाहे कितनी सफ़ाई दो! 

  2. मज़ाक़ में कभी, बिना सोचे समझे किसी का मान हनन नहीं करें! 

  3. वर्तमान में चुनावी दंगल में ऐसी अभद्र भाषा व द्रोपदी के चीर हरण से अधिक शर्मनाक तरीक़ों से चुनावी पार्टियाँ एक दूसरे का शील हरण कर रही हैं, कि दुशासन भी इनसे सभ्य लगने लगा है। गाली-गलौज के निम्नतर स्तर पर सत्ता पक्ष व विपक्ष उतर गया है। 

सभी श्रीमद्भागवत गीता के पुजारी हैं। ब्रह्म मुहूर्त में योग, पूजा पाठ करते हैं पर न तो स्वयं न अपनी पार्टी के सदस्यों की, वाणी को संयमित कर पाते हैं। पार्टी अध्यक्ष का उत्तरदायित्व है कि वह इस पर नियंत्रण करे।

श्रीमद्भागवत गीता के 7वें अध्याय के 9वें श्लोक में कहा है कि, “हे! अर्जुन मैं ही आकाश में शब्द हूँ।” आकाश सर्वव्यापी है। विज्ञान ने सिद्ध कर दिया है कि उच्चारित शब्द कभी समाप्त नहीं होते। वह तरंगों में बदल जाते हैं। 

कृष्ण ने कहा कि पुरुषों में पुरुषत्व हूँ, लगता है सब पौरुषहीन हो गये हैं। (नपुंसक तो नहीं लिख सकती) 

वह कहते हैं कि वह कभी क्षरण नहीं होने वाला अक्षर है। अक्षरों से शब्द बनता है, शब्द से गाली व स्तुति, प्रशंसा व निंदा, मधुर सत्य वचन कटु व असत्य आदि वाक्य बनते हैं। 

बड़ी कठिनाई से रोज़मर्रा की भाषा में बोले जाने वाली गालियों का प्रयोग कुछ कम हुआ था। परन्तु बॉलीवुड की भाषा तथा चुनावी भाषा ने उसे फिर से आम जनता में प्रचलित कर दिया। समाज का अधःपतन करने की, लगता है कि कोई प्रतियोगिता चल रही है।

श्रीमद्भागवत गीता के 7वें अध्याय के 27वें श्लोक में इसका कारण भी बताया गया है जो एक दम समीचीन है। “हे अर्जुन! संसार में इच्छा और द्वेष से सम्पूर्ण प्राणी अत्यंत अज्ञता सम्मोह को प्राप्त हो रहे हैं।” 

अगर इतने रसातल में राजनीति व समाज का स्तर गिर जायेगा तो राम राज्य के मूल तत्त्व शायद ही कभी स्थापित हो सकें। पत्थरों से रामराज्य नहीं बन सकता वरन्‌ राम के आदर्शों पर चलने ही रामराज्य आयेगा। राम ने कभी राक्षसों के लिये भी भाषा की मर्यादा नहीं भंग की। और न उनके शत्रु दशानन ने अपने दस मुखों से राम सीता के लिये अभद्र भाषा का प्रयोग किया। राम राज्य लाने की प्रतिज्ञा करने वाले क्या इस तरह का रामराज्य लाने वाले हैं, बहुत विचारणीय है? कृष्ण इन्हें सुबुद्धि प्रदान करें। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सामाजिक आलेख
ऐतिहासिक
सांस्कृतिक आलेख
सांस्कृतिक कथा
हास्य-व्यंग्य कविता
स्मृति लेख
कविता
ललित निबन्ध
कहानी
यात्रा-संस्मरण
शोध निबन्ध
रेखाचित्र
बाल साहित्य कहानी
लघुकथा
आप-बीती
वृत्तांत
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
बच्चों के मुख से
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में