इक्कसवीं सदी में कछुए और ख़रगोश की दौड़
डॉ. उषा रानी बंसल
इस कहानी का शीर्षक है ‘इक्कीसवीं सदी में ख़रगोश और कछुए में दौड़’। आपने यह रोचक कहानी कई बार पढ़ी होगी, कई बार सुनी होगी। जिसमें कछुआ और ख़रगोश आपस में दौड़ लगाते हैं, प्रतिस्पर्धा करते हैं। और उस प्रतिस्पर्धा में अपनी नादानी की वजह से हर बार ख़रगोश हार जाता है, और कछुआ धीरे-धीरे चलते हुए भी मंज़िल तक पहुँच कर जीत जाता है।
21 वीं शताब्दी में एक बार फिर ऐसा हुआ कि कछुए और ख़रगोश में दोस्ती हो गई। एक नदी के किनारे कछुआ और ख़रगोश दोनों ही मिलते थे। अचानक उनको अपने दादा–दादी और पुराने ज़माने की बात याद आ गई। कछुए ने कहा कि चलो मित्र हम एक बार फिर दौड़ प्रतियोगिता करते हैं। ख़रगोश भी दौड़ने के लिये तैयार हो गया।
कछुए ने कहा कि इस बार दौड़ का स्थान वह तय करेगा। ख़रगोश इस बात के लिये तैयार हो गया। कछुए ने कहा कि इन आम के पेड़ों से लेकर वहाँ जो वह छोटी-सी नदी है उसके बाद किनारे पर जो आम का पेड़ है, वहाँ तक हम दौड़ेंगे और वहाँ से वापस आएँगे।
ख़रगोश थोड़ा चिंतित हुआ फिर बोला, “अच्छा ठीक है।”
स्पर्धा शुरू हुई। ख़रगोश को पुरानी कहानी याद आ गई और वह रास्ते में कहीं पर न रुक कर, तेज़ी से दौड़ा, फिर वहाँ से पेड़ छूकर तेज़ी से आया और नदी के किनारे रुक गया, क्योंकि उसे तैरना नहीं आता था, तो वो नदी पार नहीं कर सका और वहीं बैठ गया।
कछुआ धीरे-धीरे आया और देर से पहुँचने के बाद भी छपाक, छपाक नदी में कूद गया। कछुआ नदी पार करके दूसरी तरफ़ वाले आम के पेड़ को छूकर वापस नदी में तैरकर वापस आ गया। ख़रगोश फिर हार गया। पर ख़रगोश इस बार निराश नहीं हुआ। उसने कहा कि दोस्त अब तक हम लोग एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रहे थे, जीत-हार का खेल-खेल रहे थे, नयी सदी में प्रतिस्पर्धा के नियम जीत–हार, या एक दूसरे को नीचा दिखाने के नहीं होंगे।
कछुआ थोड़ा चिंतित-सा हो गया और बोला, “मैं कुछ समझा नहीं!”
ख़रगोश ने कहा, “तुम तो पानी में तैर सकते हो, मुझे तैरना नहीं आता। जब कि मैं ज़मीन पर तेज़ी से दौड़ता हूँ, अब जब रेस, दौड़ होगी, तब ज़मीन पर तुम मेरी पीठ पर बैठ कर चलना और जब नदी आयेगी तो मैं तुम्हारी पीठ पर बैठ कर नदी पार कर लूँगा।”
यह सुन कछुआ ख़ुशी से नाचने लगा, “वाह क्या बात कही है मित्र!”
आगे की योजना बताते हुए ख़रगोश ने कहा कि वह दूर-दूर तक उसे सैर करायेगा। अच्छे मीठे फल भी खिलाएगा, और जब रास्ते में कोई नदी-नाला आयेगा, तब तुम मुझे अपनी पीठ पर बैठा लेना और इस तरह हम नदी पार कर लेंगे। हम दोनों नदी के इस पार और उस पार की भी, इस तरफ़ की और दूसरी तरफ़ की दुनिया भी देख सकेंगे! कछुआ तैयार हो गया। और इस तरह दोनों आपसी सहयोग से देश विदेश की सैर करने लगे।
इस तरह इक्कसवीं सदी से प्रतिस्पर्धा का युग समाप्त हो गया और एक-दूसरे के सहयोग से आगे बढ़ने का युग शुरू गया।
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