अपना घर
डॉ. उषा रानी बंसललतिका और मालती एक ही महाविद्यालय में शिक्षिका थीं। दोनों अलग-अलग विषय पढ़ाती थीं। स्टाफ़ रूम में क्लास समाप्त होने पर सब शिक्षिकाएँ आती-जाती रहती थीं। यूँ तो मालती की लतिका से कुछ विशेष मित्रता नहीं थी, पर स्टाफ़ रूम में मिलते-मिलते आपस में कुछ अधिक बातचीत होने लगी। लतिका परित्यक्ता थी। उसके एक बिटिया थी। वह महाविद्यालय से काफ़ी दूरी पर अपने माता-पिता व भाई-भाभी के साथ रहती थी । एक दिन वह जब स्टाफ़ रूम में आई तो बहुत ख़ुश थी। उसने बताया कि महाविद्यालय के परिसर में ही उसे घर आवंटित हो गया है। वह चाबी मिलने पर वहाँ रहने आ जायेगी। १-२ महीने बाद उसने गृहप्रवेश की पूजा कराई और विधिवत वहाँ रहने लगी।
एक दिन वह क्लास समाप्त होने पर स्टाफ़ रूम में आई , अन्य सहपाठी उससे नये घर के सम्बंध में बात करने लगे। एक ने कहा कि माँ का घर छोड़ कर रहने में मन नहीं लग रहा होगा। किसी ने कहा, कि वहाँ इतना बड़ा परिवार था, यहाँ बहुत अकेला लगता होगा। वह सब की बातों का जवाब दे कर मालती से बात करने लगी कि वह नया घर लगाने में बहुत व्यस्त हो गई है। घर का सामान अपनी पसंद का ख़रीदा है। पर्दे आजकल के डिज़ाइन के लगवाये हैं । कहने लगी कभी आओ तो दिखाऊँ।
चालीस साल की उम्र हो गई पर अपना घर पहली बार हुआ है। अपने घर में रहने का अवसर अब आया है। अपना घर तो अपना होता है। यह सब कहते-कहते उसके नेत्र गीले हो गये। बरसों के दुख घनीभूत हो आँखों में समा गये।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- आई बासंती बयार सखी
- आज के शहर और कल के गाँव
- आशा का सूरज
- इनके बाद
- उम्मीद का सूरज
- उलझनें ही उलझनें
- उसकी हँसी
- ऊँचा उठना
- कृष्ण जन्मोत्सव
- चित्र बनाना मेरा शौक़ है
- जाने समय कब बदलेगा
- प्रिय के प्रति
- बिम्ब
- बे मौसम बरसात
- भारत के लोगों को क्या चाहिये
- मैं और मेरी चाय
- मैसेज और हिन्दी का महल
- राम ही राम
- लहरें
- लुका छिपी पक्षियों के साथ
- वह
- वक़्त
- संतान / बच्चे
- समय का क्या कहिये
- स्वागत
- हादसे के बाद
- होने न होने का अंतर?
- होरी है……
- ज़िंदगी के पड़ाव ऐसे भी
- सामाजिक आलेख
- ऐतिहासिक
-
- 1857 की क्रान्ति के अमर शहीद मंगल पाण्डेय
- 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान भारत में उद्योग
- औपनिवेशिक भारत में पत्रकारिता और राजनीति
- पतित प्रभाकर बनाम भंगी कौन?
- भारत पर मुस्लिम आक्रमणों का एक दूसरा पक्ष
- शतरंज के खिलाड़ी के बहाने इतिहास के झरोखे से . . .
- सत्रहवीं सदी में भारत की सामाजिक दशा: यूरोपीय यात्रियों की दृष्टि में
- सोलहवीं सदी: इंग्लैंड में नारी
- स्वतंत्रता आन्दोलन में महिला प्रतिरोध की प्रतिमान: रानी लक्ष्मीबाई
- सांस्कृतिक आलेख
- सांस्कृतिक कथा
-
- इक्कसवीं सदी में कछुए और ख़रगोश की दौड़
- कलिकाल में सावित्री व सत्यवान
- क्या तुम मेरी माँ हो?
- जब मज़ाक़ बन गया अपराध
- तलवार नहीं ढाल चाहिए
- नये ज़माने में लोमड़ी और कौवा
- भेड़िया आया २१वीं सदी में
- मुल्ला नसीरुद्दीन और बेचारा पर्यटक
- राजा प्रताप भानु की रावण बनने की कथा
- रोटी क्या है?: एक क़िस्सा मुल्ला नसीरुद्दीन का
- हास्य-व्यंग्य कविता
- स्मृति लेख
- ललित निबन्ध
- कहानी
- यात्रा-संस्मरण
- शोध निबन्ध
- रेखाचित्र
- बाल साहित्य कहानी
- लघुकथा
- आप-बीती
- यात्रा वृत्तांत
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- बच्चों के मुख से
- साहित्यिक आलेख
- बाल साहित्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-