समाचार पत्रों में हिंदी भाषा
डॉ. उषा रानी बंसलआज के चुनावी वातावरण में भाषा की बात करना बेकार लग सकता है। लेकिन जब बात समाचारपत्र से जुड़ी हो तो शीषर्क देख कर शायद ही कोई इसे पढ़ना चाहेगा। पर बात इतनी ज़रूरी है कि अब नहीं लिखा तो बहुत देर हो जायेगी।
बचपन में जब भी हम पिताजी, भाई, बहिन, अध्यापक से भाषा सीखने का तरीका पूछते थे तो एक ही उत्तर मिलता था कि समाचारपत्र प्रतिदिन पढ़ा करो। समाचारपत्र का प्रयोग एक प्रमाणिक हिंदी-अग्रेज़ी शब्दकोश के रूप में किया जाता था। लेकिन आज हम अपने बच्चों, नाती, पोती-पोतों से ऐसा नहीं कह सकते हैं। क्यों? यह विचारणीय है?
समाचारपत्र अपने पद से स्खलित हो गये हैं। ख़ासतौर से सबसे अधिक पढ़े जाने वाले हिंदी समाचारपत्र दैनिक जागरण की हिंदी भाषा का स्तर तो ज़ी टी.वी. की हिंगलिश का भी नाती बन गया है। अपनी बात और स्पष्ट करती हूँ। 15 अप्रैल 2014 को मैं किसी कारणवश मेरठ गई थी, जहाँ ठहरी थी उनके यहाँ भी दैनिक जागरण आता था। अतः चाय के साथ मैंने आदतन दैनिक जागरण पढ़ना शुरू कर दिया। समाचारपत्र में मेरठ शहर के चार पृष्ठ भी थे। चौथे पन्ने के अंतिम चार कालम पढ़ते ही सिर भन्ना गया। हिंदी समाचारपत्र में हिंदी का क्रियाकर्म देख दिल दुख गया। अंग्रेज़ी के शब्दों को हिंदी के वाक्य में प्रयुत्त किया गया था। जैसे- मैंने आस्क किया कि पिक्चर इन्जाय की, क्या फाइट थी।
देखिये 27.4.14 के यात्रा अंक का शीर्षक (नेचर के बीच एडवेंचर ---) क्या हिंदी अखबार में ऐसे शीर्षक होने चाहियें।
आगे देखिये और भी सुभानअल्ला वाक्य है- (इस गर्मी कैम्पिंग भी किया जाये और नये डेस्टिनेशंस का......) इंफ्रा पुरस्कार प्राप्त करने वाले हिंदी के समाचार पत्र में इस तरह हिंदी जनाज़ा निकाला जा रहा है।
तारीख 9 मई 14 पृष्ठ 18 देखिये (फन के साथ नालेज); (बढ़ती है रीडिंग हैबिट) (ढेर सारा फन) सोचने की बात है कि क्या यह हिंदी का सरलीकरण है? अंग्रेज़ी या किसी भाषा का सरलीकरण यही है, इससे किस का भला होगा? हिंदी का या अंग्रेज़ी का, या दोनों ही अपना रूपरंग खो देंगीं।
ऐसी हिंदी पढ़ कर मेरा सिर घूम जाता है। हिंदी जागरण धन अर्जित करने की लालसा में शायद यह भूलता जा रहा है कि वह जिस हिंदी की रोटी खा रहा है उसकी थाली में छेद कर रहा है। यह अखबार बार-बार ताल ठोंक कर लिखता है कि वह हिंदी का सबसे लोकप्रिय व सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला अखबार है, तब उसकी ज़िम्मेदारी भी सबसे अधिक बनती है कि वह सही हिंदी का प्रयोग करे, वाक्यविन्यास व व्याकरण भी, हिंदी के कलेवर को विकृत न करे। मुझे लगता है कि बिकने की अंधी दौड़ में न केवल वह अपने पथ से भटक गये हैं वरन हिंदी भाषा के वृक्ष की जड़ें भी खोद रहे हैं। पर ऐसा करते समय उन्हें यह ध्यान नहीं है कि कल अगर हिंदी भाषा का वृक्ष ही सूख गया तो उनका अखबार ख़ुद-ब-ख़ुद काल कलवित हो जायेगा।
अच्छा व्यापारी वही है जो मादा को पाले, मारने का काम न करे। बुद्धिमानी इसी में है कि समय रहते चेत जायें। हिंदी को मेरा शत् शत् नमन।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- आई बासंती बयार सखी
- आज के शहर और कल के गाँव
- आशा का सूरज
- इनके बाद
- उम्मीद का सूरज
- उलझनें ही उलझनें
- उसकी हँसी
- ऊँचा उठना
- कृष्ण जन्मोत्सव
- चित्र बनाना मेरा शौक़ है
- जाने समय कब बदलेगा
- प्रिय के प्रति
- बिम्ब
- बे मौसम बरसात
- भारत के लोगों को क्या चाहिये
- मैं और मेरी चाय
- मैसेज और हिन्दी का महल
- राम ही राम
- लहरें
- लुका छिपी पक्षियों के साथ
- वह
- वक़्त
- संतान / बच्चे
- समय का क्या कहिये
- स्वागत
- हादसे के बाद
- होने न होने का अंतर?
- होरी है……
- ज़िंदगी के पड़ाव ऐसे भी
- सामाजिक आलेख
- ऐतिहासिक
-
- 1857 की क्रान्ति के अमर शहीद मंगल पाण्डेय
- 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान भारत में उद्योग
- औपनिवेशिक भारत में पत्रकारिता और राजनीति
- पतित प्रभाकर बनाम भंगी कौन?
- भारत पर मुस्लिम आक्रमणों का एक दूसरा पक्ष
- शतरंज के खिलाड़ी के बहाने इतिहास के झरोखे से . . .
- सत्रहवीं सदी में भारत की सामाजिक दशा: यूरोपीय यात्रियों की दृष्टि में
- सोलहवीं सदी: इंग्लैंड में नारी
- स्वतंत्रता आन्दोलन में महिला प्रतिरोध की प्रतिमान: रानी लक्ष्मीबाई
- सांस्कृतिक आलेख
- सांस्कृतिक कथा
-
- इक्कसवीं सदी में कछुए और ख़रगोश की दौड़
- कलिकाल में सावित्री व सत्यवान
- क्या तुम मेरी माँ हो?
- जब मज़ाक़ बन गया अपराध
- तलवार नहीं ढाल चाहिए
- नये ज़माने में लोमड़ी और कौवा
- भेड़िया आया २१वीं सदी में
- मुल्ला नसीरुद्दीन और बेचारा पर्यटक
- राजा प्रताप भानु की रावण बनने की कथा
- रोटी क्या है?: एक क़िस्सा मुल्ला नसीरुद्दीन का
- हास्य-व्यंग्य कविता
- स्मृति लेख
- ललित निबन्ध
- कहानी
- यात्रा-संस्मरण
- शोध निबन्ध
- रेखाचित्र
- बाल साहित्य कहानी
- लघुकथा
- आप-बीती
- यात्रा वृत्तांत
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- बच्चों के मुख से
- साहित्यिक आलेख
- बाल साहित्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-