सोलहवीं सदी: इंग्लैंड में नारी
डॉ. उषा रानी बंसलसोलहवीं शताब्दी में इंग्लैंड पर ट्यूडर वंश का शासन था। राज्य पर रोमन चर्च का वर्चस्व था। पुनर्जागरण काल ने यूरोप में कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट ईसाई मतों में खुली प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया था। इंग्लैंड की जनता धर्म के नाम पर होने वाली इन हत्याओं से त्राहि-त्राहि कर रही थी। 1509 से 1547 तक ट्यूडर वंश के हेनरी अष्टम ने इंग्लैंड पर राज्य किया। वह निरंकुश राजतंत्र का शक्तिशाली, निरंकुश राजा था। उसका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य यह था—पोप सत्ता को इंग्लैंड के राज्य पर से समाप्त करना। जिससे कुछ समय के लिए धार्मिक ख़ूनी होली पर यह विराम लग गया। जनता का जीवन सुरक्षित हो गया था। इस कार्य ने हेनरी अष्टम को इंग्लैंड की जनता में लोकप्रिय बना दिया। हेनरी अष्टम की नृशंसता पूर्ण कार्यों से जनता दुखी थी, लेकिन सुरक्षा और स्थायित्व का यह मूल्य चुकाना, उन्हें फिर भी सस्ता लग रहा था। इसलिए प्रजा ने हेनरी सप्तम के क्रूरता पूर्ण कार्यों के बाद भी आदर सम्मान दिया। पोप के वर्चस्व की समाप्ति के साथ ही इंग्लैंड की संसद और राजा के मध्य प्रभुता के लिए संघर्ष प्रारंभ हो गया। जिसका अंत आने वाले वर्षों में इंग्लैंड के पार्लियामेंट्री सरकार के गठन में हुआ।
हेनरी अष्टम का इंग्लैंड कुलीन, साधारण वर्ग और दासों में बँटा हुआ था। धार्मिक राजनैतिक परिदृश्य ने सामाजिक जीवन और मान्यताओं को अत्याचारी बना दिया था। इंग्लैंड के समाज में नारी पुरुष के अधीन थी। ईसाई संप्रदाय के अनुसार आदम के स्वर्ग से विचलित होने की उत्तरदायी ईव नामक स्त्री थी। इसलिए स्त्रियों को गोहनी, पिशाचिनी इत्यादि समझते थे। पुरुषों से स्त्रियों को हेय दृष्टि से देखा जाता था। पुरुष अनेक विवाह कर सकते थे। उनके अन्य स्त्रियों तथा दासियों के साथ अनैतिक संबंधों को कोई चुनौती नहींं दे सकता था। लेकिन किसी स्त्री पर व्यभिचारिणी का आरोप लगाकर न केवल उसे बंदी गृह में यातनाएँ सहने के लिए डाल दिया जाता था, वरन् उनको आम फाँसी दे दी जाती थी। कुलीन पुरुष वेश्याओं पर ख़ूब धन लुटाते थे।
हेनरी अष्टम की विवाह कथा-स्त्रियों की इंग्लैंड में दशा की ज़ुबानी है। हेनरी अष्टम ने 5 शादियाँ की थी। प्रथम विवाह 1509 ऑरगान की कैथरीन से किया, जो ईसाई चर्च में संपन्न हुआ। राजा हेनरी ने 1533 में उसे तलाक़ दे दिया, क्योंकि वह ऐन बोलेइन के प्रेम में पागलपन की हद तक पहुँच गया था। उसने 1533 में दूसरा विवाह ऐन बोलेइन से रचाया। ऐन ने केवल तीन पुत्रियों को जन्म दिया, जिसमें से केवल एक जीवित रही। उसका नाम था एलिज़ाबेथ। जो एलिज़ाबेथ प्रथम के नाम से इंग्लैंड की महारानी बनी थी।
हेनरी अष्टम को इंग्लैंड के सिंहासन पर बिठाने के लिए एक पुत्र प्राप्त करने की तीव्र लालसा थी। जब बोलेइन उसको पुत्र न दे सकी तो हेनरी ने सारा दोष बोलेइन के सिर मढ़ दिया। उसने बोलेइन पर व्यभिचारिणी होने का आरोप लगाकर क़ैद में डलवा दिया। उसने अपनी इस शादी को ग़ैरक़ानूनी क़रार दिलवा दिया। बोलेइन को मृत्युदंड दे दिया गया, उसकी गर्दन तलवार से उड़ा दी गई। एलिज़ाबेथ जो अब तक राजकुमारी थी, हेनरी की नाजायज़ औलाद हो गई। हत्या के दूसरे दिन हेनरी ने अपनी प्रेमिका जेन सेमयोर से 20 मई 1534 को विवाह रचा लिया। हेनरी पुत्र प्राप्त करने के लिए बेताब था। अंत में उसकी अभिलाषा 1537 में जेन सेमयोर ने एक पुत्र को जन्म देकर पूरी की। हेनरी ख़ुशी से फूला नहींं समाया। बड़ी शान-शौकत से उसका नामकरण किया गया। पुत्र के जन्म के तीसरे दिन उसका बपितस्मा कर ‘एडवर्ड‘ नाम रख दिया गया। लेकिन सेमयोर को 33 घंटे प्रसव पीड़ा भोगनी पड़ी। ईसाई विश्वास के अनुसार “प्रसव पीड़ा, नारी के द्वारा किए गए बुरे कर्मों का परिणाम था। प्रसव पीड़ा सहन करने से पापों का शमन होता है, अतः दर्द कम करने या प्रसव के समय कोई दवाई नहींं दी गई,“ इसका प्रतिफल यह हुआ कि एक सप्ताह में जेन सेमयोर की मृत्यु हो गई।
हेनरी अष्टम ने1540 में ऐन क्लीवस से शादी कर ली पर यह वह मात्र 6 महीने चली। हेनरी ने 1540 में ही ऐन बोलेइन की चचेरी बहिन कैथरीन हार्वड, जो मात्र 19 वर्ष की थी, से शादी कर ली। वह हेनरी की चौथी पत्नी बनी। उसका हेनरी पर बहुत प्रभाव था। परंतु 1542 में उस पर पतिता का आरोप लगाकर उसे भीड़ के द्वारा मौत के घाट उतरवा दिया। हेनरी अष्टम ने 5वीं शादी कैथरीन नामक महिला से 1543 में की। इस विवाह के 5 वर्ष बाद 1947 में हेनरी अष्टम चल बसा। कैथरिन की 1548 में मृत्यु हो गई। इस तरह हेनरी अष्टम ने एक के बाद एक 5 विवाह किए, जिनमें दो पत्नियों का क़त्ल गला रेतकर करवा दिया। इंग्लैंड की पुरुष प्रधान ईसाई जनता ने हेनरी अष्टमी इस क्रूरता और नृशंसता पर कोई प्रतिक्रिया नहींं की। क्योंकि ईसाई समाज में नारी के प्रति किया गया यह व्यवहार सामान्य सी बात थी।
इस घटना की जनता व प्रजा ने उस समय कोई प्रतिक्रिया नहींं की, लेकिन ईसाई सामाजिक मान्यताओं में इसने एक कील ठोक दी। हेनरी अष्टम की नाजायज़ क़रार दी गई पुत्री एलिज़ाबेथ पर इसका जबरदस्त प्रभाव पड़ा। उसे अपनी माँ के प्रति किए गए क्रूरता पूर्ण व्यवहार के बारे में अंततः सब पता चल गया। उसे यह भी पता चला कि उसकी माँ और मौसी को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का भी कोई मौक़ा नहींं दिया गया। उसे अपने पिता के इस अन्याय से बहुत घृणा हो गई। एलिज़ाबेथ के प्रति हेनरी का व्यवहार बहुत ख़राब था। प्रिंसेस होने के बाद भी उसके पास पहनने के लिए ढंग के कपड़े नहींं थे। ऐसी सभी राज्य की सुविधाओं से वंचित कर उसे लंदन दूर रखा गया। कितना आश्चर्य है कि जिस लड़की के पिता के अनेक महल थे, वह निर्वासित जीवन जी रही थी। एलिज़ाबेथ पर सब घटनाओं का गहरा प्रभाव पड़ा। वह अपने वैभवशाली लोकप्रिय पिता का तो विरोध नहींं कर सकती थी लेकिन इसने उसके मन में विवाह और पुरुष वर्चस्व के प्रति घृणा भर दी। 1547 में जब एलिज़ाबेथ के पिता की मृत्यु हो गई तब वह मात्र 14 वर्ष की थी। उसने एक दृढ निश्चय किया कि “आई विल नेवर मैरी, मैं शादी कभी नहींं करूँगी।”
दुर्भाग्यवश एडवर्ड राजा बनने से पहले ही मर गया। मेरी के महारानी बनने के बाद, जब एलिज़ाबेथ इंग्लैंड की महारानी बनी तो पूरे राज्य और संसद ने एलिज़ाबेथ पर दबाव डाला कि वह शादी कर ले। एक के बाद एक युवराज दूल्हे के रूप में प्रस्तुत किए गए। मंत्रिपरिषद की चिंता थी कि एलिज़ाबेथ शादी कर लेगी तो इंग्लैंड को एक राजा तथा एक वारिस, पुत्र मिल जाएगा। लेकिन एलिज़ाबेथ अकेले इस पुरुष वर्चस्व का मुक़ाबला हिम्मत से करती रही। एक अहिंसात्मक क्रांतिकारी की तरह उन्होंने इंग्लैंड का शासन बड़ी कुशलता से सँभाला और स्पष्ट रूप से कहा कि इंग्लैंड को वह अपना पति मानती हैं। जबकि तत्कालीन ईसाई समाज में नारी की स्थिति के प्रति यह प्रतिक्रिया आश्चर्यजनक थी। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि संसद को अच्छा सा शासक नहींं वरन् एक राजा और एक वारिस चाहिए। लेकिन उन्हें देश से प्रेम है वह उसके लिए कार्य करेगीं।
एलिज़ाबेथ के लिये इंग्लैंड पर शासन करना दुधारी तलवार पर चलने जैसा था। एक तरफ़ पुरुष समाज का वर्चस्व और नारी के प्रति क्रूरता पूर्ण कार्य तथा प्रोस्टेंट और कैथोलिक के मध्य चलने वाली वर्चस्व की लड़ाई। हेनरी अष्टम ने पोप के प्रभाव से इंग्लैंड को मुक्त करा दिया था। एलिज़ाबेथ ने भी इंग्लैंड को पोप के प्रभुत्व से दूर रखा। एलिज़ाबेथ को मारने की योजना भी बनाई गई। इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ की हत्या को ‘पाप या पुण्य‘ कहा जाएगा, जब रोम के पोप से जानना चाहा तो पोप पायस पंचम ने कहा कि यह प्रभु के प्रति किया गया महान कार्य होगा और जो ऐसा करेगा उसे पुण्य मिलेगा। लेकिन यह एक षड्यंत्र क़ामयाब ना हो सका।
16वीं सदी में इंग्लैंड में प्रिंसेस को महारानी बनने का वंशानुगत अधिकार तो था, लेकिन उसका मुख्य ध्येय था इंग्लैंड को राजा तथा वारिस प्रदान करना। महारानी एलिज़ाबेथ ने तत्कालीन समाज में नारी की इस दुर्दशा के विरुद्ध अकेले ही सफल संघर्ष किया। किसी युवराज से विवाह कर स्वयं को उसकी पत्नी का दोयम दर्जा प्राप्त नहीं किया, क्योंकि वह जानती थी कि महारानी बनने और राजा की पत्नी होने में सोलहवीं सदी के इंग्लैंड के समाज में ज़मीन आसमान का अंतर था। वह अपने पिता के द्वारा पत्नियों पर किए गए अत्याचार को, किसी को पति वरण कर दोबारा इतिहास दोहराना नहींं चाहती थी। उन्होंने तत्कालीन इंग्लैंड के समाज में नारी की दुर्दशा और अत्याचारों के विरुद्ध स्त्री को अपने वजूद के साथ जीने की मिसाल क़ायम की थी। जिसका इंग्लैंड के समाज पर दूरगामी प्रभाव हुआ। नारी मुक्ति आंदोलन की नींव का पहला पत्थर एलिज़ाबेथ ने रखा था।
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