प्रिय के प्रति

04-08-2014

प्रिय के प्रति

डॉ. उषा रानी बंसल

ये मिले तो लगा
अमावस की गहरी निशा को,
चाँदनी की किरण मिल गई,
इक आशा, नया विश्वास,
कुछ करने का हौसला मिला।
मेरी रुचियों को यूँ सँवारा,
मेरे लेखन को सजाया,
हर लिखी पंक्ति को सहेजा
हर उकेरे चित्र को सराहा,
पर....
उनके जाने के बाद,
मैं तो वही हूँ,
अब रुचियाँ कहीं खो सी गईं।

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