मैसेज और हिन्दी का महल
डॉ. उषा रानी बंसलस्वतंत्रता की ७५ वाँ वर्ष गाँठ पर बधाई,
जब रोमन में लिखीं व्हटस अप पर आईं
तब मन में बहुत बेहद चुभन हुई,
७५ वर्षों में हम अपनी देवनागरी लिपि में,
बधाई भी लिखना न सीख पाये!
अँग्रेज़ चले गये पर, रोमन लिपि में,
अँग्रेज़ीयत छोड़ गये,
दिल ने कहा हम अभी भी ग़ुलाम हैं, उनके!
कुछ को मैंने लिखा कि मोबाइल नेटवर्क पर हिन्दी में,
लिखना हुआ, सरल है, एक प्रयास तो करो,
स्वतंत्रता की इस वर्षगाँठ पर इतना तो करो,
सब संदेश हिन्दी में लिखा करो,
हिन्दी भाषी हो इतना तो हिन्दी का मान करो?
अधिकतर ने चुप्पी साध ली,
कुछ ने हाँ में हाँ मिलाई,
कुछ ने लिखा उन्हें पता ही नहीं, कैसे लिखें,
पर—
संदेशे रोमन हिन्दी में ही आते रहे।
एक दो ने हिन्दी में एक दो पंक्तियाँ लिखीं,
हिन्दी में लिखने का प्रयास तो किया,
पर लगा कि वह अब!
हिन्दी न तो पढ़ते हैं न लिखते हैं, न ही बोलते हैं,
देवनागरी, हिन्दी प्रदेश के लोग हिन्दी भूल चले हैं।
मेरी आत्मा इसको देख ज़ार-ज़ार, तार-तार हो गई
ऐसे धरातल पर हिन्दी का पुख़्ता महल बनाने का स्वप्न
यथार्थ की देहरी पर सिर धुनने लगा।
क्या कभी हम अंग्रेज़ीयत के मोह पाश से स्वतंत्र हो पायेंगे?
४,९,२०२१
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