नए साल का सूर्योदय, ख़ुशियों के उजाले हों
प्रियंका सौरभ
नए साल का सूर्योदय,
ख़ुशियों के लिए उजाले हो॥
पल-पल खेल निराले हों,
आँखों में सपने पाले हों।
नए साल का सूर्योदय यह,
ख़ुशियों के लिए उजाले हों॥
मानवता का संदेश फैलाते,
मस्जिद और शिवाले हों।
नीर प्रेम का भरा हो सब में,
ऐसे सब के प्याले हों॥
होली जैसे रंग हो बिखरे,
दीपों की बारात सजी हो,
अँधियारे का नाम ना हो,
सबके पास उजाले हों॥
हो श्रद्धा और विश्वास सभी में,
नैतिक मूल्य पाले हों।
संस्कृति का करें सब पूजन,
संस्कारों के रखवाले हों॥
चौराहे न लुटे अस्मत,
दुःशासन न फिर बढ़ पाए,
भूख, ग़रीबी, आतंक मिटे,
न देश में धंधे काले हों॥
सच्चाई को मिले आज़ादी,
लगे झूठ पर ताले हों।
तन को कपड़ा, सिर को साया,
सबके पास निवाले हों॥
दर्द किसी को छू न पाए,
न किसी आँख से आँसू आए,
झोंपड़ियों के आँगन में भी,
ख़ुशियों की फैली डालें हों॥
‘जिए और जीने दे’ सब
न चलते बरछी भाले हों।
हर दिल में हो भाईचारा
नाग न पलते काले हों॥
नग़्मों-सा हो जाए जीवन,
फूलों से भर जाए आँगन,
सुख ही सुख मिले सभी को,
एक दूजे को सँभाले हों॥
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