आशा है नव साल की, सुखद बने पहचान
प्रियंका सौरभ
खिली-खिली हो ज़िन्दगी, महक उठे अरमान।
आशा है नव साल की, सुखद बने पहचान॥
दर्द दुखों का अंत हो, विपदाएँ हो दूर।
कोई भी न हो कहीं, रोने को मजबूर॥
छेड़ रही है प्यार की, मीठी-मीठी तान।
नए साल के पंख पर, ख़ुशबू भरे उड़ान॥
बीत गया ये साल तो, देकर सुख-दुःख मीत।
क्या पता? क्या है बुना? नई भोर ने गीत॥
माफ़ करे सब ग़लतियाँ, होकर मन के मीत।
मिटे सभी की वेदना, जुड़े प्यार की रीत॥
जो खोया वह सोचकर, होना नहीं उदास।
जब तक साँसें हैं मिली, रख ख़ुशियों की आस॥
पिंजड़े के पंछी उड़े, करते हम बस शोक।
जाने वाला जायेगा, कौन सके है रोक॥
पथ के शूलों से डरे, यदि राही के पाँव।
कैसे पहुँचेगा भला, वह प्रियतम के गाँव॥
रुको नहीं चलते रहो, जीवन है संघर्ष।
नीलकंठ होकर जियो, विष तुम पियो सहर्ष॥
दुःख से मत भयभीत हो, रोने की क्या बात।
सदा रात के बाद ही, हँसता नया प्रभात॥
चमकेगा सूरज अभी, भागेगा अँधियार।
चलने से कटता सफ़र, चलना जीवन सार॥
काँटें बदले फूल में, महकेंगें घर-द्वार।
तपकर दुःख की आग में, हमको मिले निखार॥
-प्रियंका सौरभ
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