बचपन का गाँव

15-12-2024

बचपन का गाँव

प्रियंका सौरभ (अंक: 267, दिसंबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

ठण्डी-ठण्डी छाँव में
उस बचपन के गाँव में
मैं-जाना चाहती हूँ। 
तोड़ना चाहती हूँ
बंदिश चारों पहर की। 
नफ़रत भरी ये
ज़िन्दगी शहर की॥
 
अपनेपन की छाया
मैं पाना चाहती हूँ। 
उस बचपन के गाँव में
मैं-जाना चाहती हँ हूँ॥
 
घुट-सी गयी हूँ
इस अकेलेपन में
ख़ुशियों के पल ढूँढ़ रही
निर्दयी से सूनेपन में
इस उजड़े गुलशन को
मैं महकाना चाहती हूँ। 
उस बचपन के गाँव में
मैं-जाना चाहती हूँ॥
  
प्रेम और भाईचारे का
जहाँ न संगम हो। 
भागे एक-दूजे से दूर
न मिलन की सरगम हो।
उस संसार से अब
मैं छुटकारा चाहती हूँ। 
उस बचपन के गाँव में
मैं-जाना चाहती हूँ॥

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