संक्रांति, लोहड़ी मने
प्रियंका सौरभ
जन जीवन ख़ुश हो रहा, हर्षित हुआ अनंग।
संक्रांति, लोहड़ी मने, ख़ुशियाँ छाई अंग॥
मकर संक्रांति ये कहे, रहो सजग तैयार।
हृद पराग परिपूर्ण हो, झूम उठे संसार॥
बहुत-बड़ा यह पर्व है, जग जीवन आधार।
आधि-व्याधि सब दूर हो, करे नवल संचार॥
मकर संक्रांति पर्व ये, भरता नव उमंग।
तिल-गुड़ खा पोषित हो, जीवन की पतंग॥
दान पुण्य के दिवस पर, जाएँ तीरथ धाम।
दीन दुखी को दान कर, बोलो जय श्री राम॥
स्वस्थ गुणी संस्कार से, काया रहे निरोग।
पर्व मकर संक्रांति पर, सुखद आज संयोग॥
सौरभ! प्रभु जी से करें, एक यही अरदास।
सूर्य देव अब कर कृपा, हो पूरी सब आस॥
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
- दोहे
- सामाजिक आलेख
-
- अयोध्या का ‘नया अध्याय’: आस्था का संगीत, इतिहास का दर्पण
- क्या 'द कश्मीर फ़ाइल्स' से बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के चश्मे को उतार पाएँगे?
- क्यों नहीं बदल रही भारत में बेटियों की स्थिति?
- खिलौनों की दुनिया के वो मिट्टी के घर याद आते हैं
- खुलने लगे स्कूल, हो न जाये भूल
- जलते हैं केवल पुतले, रावण बढ़ते जा रहे?
- जातिवाद का मटका कब फूटकर बिखरेगा?
- टूट रहे परिवार हैं, बदल रहे मनभाव
- दिवाली का बदला स्वरूप
- दफ़्तरों के इर्द-गिर्द ख़ुशियाँ टटोलते पति-पत्नी
- नया साल सिर्फ़ जश्न नहीं, आत्म-परीक्षण और सुधार का अवसर भी
- नया साल, नई उम्मीदें, नए सपने, नए लक्ष्य!
- नौ दिन कन्या पूजकर, सब जाते हैं भूल
- पुरस्कारों का बढ़ता बाज़ार
- पृथ्वी की रक्षा एक दिवास्वप्न नहीं बल्कि एक वास्तविकता होनी चाहिए
- पृथ्वी हर आदमी की ज़रूरत को पूरा कर सकती है, लालच को नहीं
- बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने की ज़रूरत
- महिलाओं की श्रम-शक्ति भागीदारी में बाधाएँ
- मातृत्व की कला बच्चों को जीने की कला सिखाना है
- वायु प्रदूषण से लड़खड़ाता स्वास्थ्य
- समय न ठहरा है कभी, रुके न इसके पाँव . . .
- स्वार्थों के लिए मनुवाद का राग
- काम की बात
- लघुकथा
- सांस्कृतिक आलेख
-
- जीवन की ख़ुशहाली और अखंड सुहाग का पर्व ‘गणगौर’
- दीयों से मने दीवाली, मिट्टी के दीये जलाएँ
- नीरस होती, होली की मस्ती, रंग-गुलाल लगाया और हो गई होली
- फीके पड़ते होली के रंग
- भाई-बहन के प्यार, जुड़ाव और एकजुटता का त्यौहार भाई दूज
- रहस्यवादी कवि, समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरु थे संत रविदास
- समझिये धागों से बँधे ‘रक्षा बंधन’ के मायने
- सौंदर्य और प्रेम का उत्सव है हरियाली तीज
- हनुमान जी—साहस, शौर्य और समर्पण के प्रतीक
- स्वास्थ्य
- ऐतिहासिक
- कार्यक्रम रिपोर्ट
- चिन्तन
- विडियो
-
- ऑडियो
-